हिसार: वर्तमान समय में काउंसलिंग अत्यंत आवश्यक: डॉ. नंदिता बाबू

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हिसार: वर्तमान समय में काउंसलिंग अत्यंत आवश्यक: डॉ. नंदिता बाबू


हिसार: वर्तमान समय में काउंसलिंग अत्यंत आवश्यक: डॉ. नंदिता बाबू


गुजवि में ‘बेसिक काउंसलिंग स्किल्स’ विषय पर कार्यशाला आयोजित

हिसार, 27 अगस्त (हि.स.)। दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की डा. नंदिता बाबू ने कहा है कि वर्तमान समय में काउंसलिंग अत्यंत आवश्यक हो गई है। बच्चों से लेकर हर वर्ग के व्यक्ति को समय-समय पर काउंसलिंग की आवश्यकता होती है। काउंसलिंग की प्रक्रिया व्यक्ति की आयु और परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होती है।

डा. नंदिता बाबू मंगलवार को गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के सैंटर फॉर काउंसलिंग एंड वैल बींग के सौजन्य से चौधरी रणबीर सिंह सभागार में ‘बेसिक काउंसलिंग स्किल्स’ विषय पर आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित कर रही थी। डा. नंदिता बाबू ने बताया की छोटे बच्चों और बड़े बच्चों की सोच का स्तर अलग-अलग होता है। काउंसलर को सोच के इस फर्क को समझना चाहिए तथा काउंसलिंग के समय संवेदनशील रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले के समय में बच्चे अपने दादा-दादी के भी साथ रहते थे। उस समय दादा-दादी बच्चों को कहानियां सुनाते थे, जिससे कि बच्चों के ज्ञान में विकास होता था। बच्चों की समस्या को परिवारजन ही समझ कर सुलझा लेते थे। आज के समय में माता-पिता दोनों कामकाजी होते हैं। बच्चों की ओर ध्यान नहीं कर पा रहे। बच्चों की समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहे। उन्होंने बताया कि काउंसलर में विषय का ज्ञान, संचार कौशल, असेसमेंट, इंटरवीनिंगस, एथिक्स प्रोफशनल कोड का ज्ञान, स्वयं जागरूकता एवं स्वयं ज्ञान कौशल, आत्म चिंतन एवं आत्म मूल्यांकन के गुण होने चाहिए।

सैल के निदेशक प्रो. संदीप राणा ने इस अवसर पर कहा कि आज के बच्चे कल के भारत के निर्माता हैं। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में चुनौतियों से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, चाहे वो तनाव का प्रबंधन हो, कैरिअर के मुद्दे हों, रिश्तों को बेहतर ढंग से प्रबंधन करने की बात हो या युवाओं को उनकी क्षमता के अनुरूप आगे बढ़ने का मार्गदर्शन हो। मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ विभिन्न क्षेत्रों जैसे हस्पतालों, शिक्षण संस्थानों, औद्योगिक इकाइयों व डिफेंस में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। बच्चों के व्यवहार में कोई आकस्मिक बदलाव आता है तो माता-पिता व उसके शिक्षकों को उसके बारे में सजग रहना चाहिए। जरूरत पड़ने पर विषय विशेषज्ञों की मदद ले लेनी चाहिए। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि छोटी उम्र से ही बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर ध्यान दिया जाए।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर / SANJEEV SHARMA

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