हिसार : कठिनाई के बावजूद  लक्ष्य न छोड़ें युवा : बीआर कम्बोज

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हिसार : कठिनाई के बावजूद  लक्ष्य न छोड़ें युवा : बीआर कम्बोज


हकृवि में ‘सेवा प्रबोधन’ कार्यक्रम आयोजित

हिसार, 30 अक्टूबर (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने कहा है कि जैसे टेक्नोलॉजी का विकास होने से समय की जो बचत होती है क्या हम उस समय का सदुपयोग कर पा रहे हैं, ये सोचने का विषय है। उन्होंने कहा कि युवा में आत्मविश्वास होना चाहिए। युवाओं को सोचना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में कितनी भी कठिनाई आए, हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचना है।

कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज बुधवार को एचएयू में युवा एंड सेवा फाउंडेशन, हरियाणा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘सेवा प्रबोधन’ कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे। मुख्य वक्ता के तौर पर गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के काउंसलिंग एवं प्लेसमेंट सैल के निदेशक प्रताप सिंह उपस्थित रहे। कुलपति ने कहा कि मेहनत करने से सफलता अवश्य मिलती है। लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए मेहनत और निरंतरता बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि लक्ष्य को निर्धारित करके अपना हर कार्य करना चाहिए। कोई भी कार्य जो हम दूसरों के परोपकार के लिए करते हैं वो सेवा ही है।

सेवा भाव हमारे संस्कारों में शामिल है। जब तक हम सिर्फ दूसरे की भलाई की भावना से किसी की सहायता करते हैं तब तक वह परोपकारी कार्य है, परंतु जैसे ही हम उसे ईश्वर का कार्य समझ कर करते हैं, तब वह सेवा बन जाता है। उन्होंने कहा कि जो बिना किसी शर्त व निस्वार्थ भाव से की जाए वही सेवा सार्थक होती है। सेवा ही पुण्य का काम है। उन्होंने महान वैज्ञानिक एडिसन का उदाहरण देते हुए कहा कि 1000 बार असफल होने के बाद उन्होंने बल्ब का आविष्कार किया, अगर वह यह प्रयास न करते तो आज यह रोशनी हमें देखने को ना मिलती। जीवन में सकारात्मक सोच के साथ चलोगे तो लक्ष्य की प्राप्ति होगी। उन्होंने युवाओं से प्रेरणादायी पुस्तकें पढऩे का भी आह्वान किया।

मुख्य वक्ता प्रताप सिंह ने कहा कि भारत देश की सभ्यता, इसकी संस्कृति और इसके जीवन मूल्य गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि हमारे 18 पुराणों का निचोड़ कुछ है तो वह परोपकार और दूसरों की सेवा है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद जी कहते थे कि नर सेवा ही नारायण की सेवा है। उन्होंने युवाओं से कहा कि हमारे भीतर सेवा का जुनून होना चाहिए। सेवा को अपने स्वभाव में लाने की आवश्यकता है। सेवा छोटी या बड़ी नहीं होती, हम किसी की मदद करके, किसी भूखे को खाना खिलाकर, प्यासे को पानी पिलाकर भी सेवा कर सकते हैं। हम एनजीओ या संगठन बनाकर भी सेवा का कार्य कर सकते हैं। मनुष्य जीवन की सार्थकता यही है कि वह सेवा कर सकता है, भक्ति कर सकता है। सेवा प्रबोधन से जुड़े वीरेन्द्र व हेमंत भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, शिक्षक एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर

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