हिसार: न्यायाधीशों की नियुक्ति में एससी, एसटी समाज को आरक्षण मिले: रजत कल्सन
इंडियन ज्यूडिशियल सर्विसेज की शुरूआत कर हायर ज्यूडिशियरी में एससी, एसटी समाज का संवैधानिक आरक्षण सुनिश्चित करे केंद्र सरकार
हिसार, 26 अप्रैल (हि.स.)। नेशनल अलायन्स फ़ॉर दलित ह्यूमन राइट्स के राष्ट्रीय संयोजक रजत कल्सन ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट व देश की अलग-अलग हाईकोर्टज में न्यायाधीशों की नियुक्ति में एससी एसटी समुदाय के लिए संवैधानिक आरक्षण की मांग की है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है तथा भारतीय संविधान के अध्याय 4 व 5 के तहत इसे भारत में स्थापित किया गया है तथा सुप्रीम कोर्ट को 'यूनियन ऑफ इंडिया में सर्वाधिक शक्तियां प्राप्त हैं।
रजत कल्सन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तथा देश की विभिन्न हाई कोर्टस में न्यायाधीशों की नियुक्ति में किसी तरह की आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर देखने में आया है कि देश की विभिन्न हाईकोर्ट में उन वकीलों को न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति की जाती है जो सरकार के बेहद नजदीक होते हैं। सुप्रीम कोर्ट तथा देश की हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रणाली कॉलिजियम सिस्टम द्वारा की जाती है जिसका संविधान में कोई कानून या प्रावधान नहीं है। एक सर्वे के दौरान देखने में आया है कि देश के ज्यादातर हाईकोर्टस व सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति देश के 200 परिवारों में से ही हो रही है। आज भी देश के हायर ज्यूडिशियरी में 75 प्रतिशत उच्च जातियों का प्रतिनिधित्व है।
अधिवक्ता कल्सन ने आईएएस की तर्ज पर भारतीय न्यायिक सेवा की परीक्षा आरंभ करने की मांग करते हुए कहा कि भारत में सबसे पहले 1958 में विधि आयोग द्वारा अपनी 14वीं रिपोर्ट में भारतीय न्यायिक सेवा का प्रस्ताव लाया गया था जिसके बाद संविधान में 42वां संशोधन कर तत्कालीन भारत सरकार ने अनुच्छेद 312 में अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं को लागू करने का कानून बनाया। इस कानून का मतलब यह था कि भारतीय सिविल सेवा, भारतीय पुलिस सेवा की तरह भारतीय न्यायिक सेवाओं के लिए भी अखिल भारतीय परीक्षा हो सकेगी तथा उसमें भारतीय संविधान के तहत समान अवसरों की सिद्धांत पर वंचित समाज को भी भारतीय न्यायिक सेवा में उनका प्रतिनिधित्व मिल सकेगा।
हिन्दुस्थान समाचार/राजेश्वर/संजीव
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