रोहतक: आठवीं शताब्दी के बाबा मस्तनाथ मठ पर मेले में तीन दिन में पहुंचे लाखों श्रद्धालु
-सिद्ध शिरोमणी बाबा मस्तनाथ की स्मृति में आयोजित तीन दिवसीय भव्य मेला सम्पन्न
-श्री बाबा मस्तनाथ के स्वरूप में महंत बालकनाथ ने दिए दर्शन
-लाखों श्रद्धालुओं ने बाबा की समाधि स्थल पर गुड और कंबल चढ़ाकर सुख समृद्धि की कामना की
रोहतक, 18 मार्च (हि.स.)। आठवीं शताब्दी से अध्यात्म, शिक्षा, चिकित्सा, संस्कृति के अनोखे संगम का केन्द्र रहे अस्थल बोहर स्थित श्री बाबा मस्तनाथ मठ में आयोजित तीन दिवसीय मेला हर्षोउल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। नवमी के दिन बाबा मस्तनाथ की समाधि पर सुबह चार बजे से ही श्रद्धालुओं की कतारें लगनी शुरू हो गईं। लाखों श्रद्धालुओं ने श्री बाबा मस्तनाथ की समाधि स्थल गुड और कंबल चढ़ाकर सुख समृद्धि की मनोकामना की।
श्री बाबा मस्तनाथ के स्वरूप महंत बालकनाथ ने श्रद्धालुओं को दर्शन देकर सुख समृद्धि व उज्जवल भविष्य का आशीर्वाद दिया। मठ परिसर में धूनी रमाए बैठे साधु संत, विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के स्टाल व कुश्ती दंगल प्रमुख आकर्षन का केन्द्र रहे। अंतर्राष्ट्रीय पहलवानों ने अपना दमखम दिखाया। विजेता पहलवानों को लाखों रूपये के नकद ईनाम देकर सम्मानित भी किया गया। श्रद्धालुओं ने प्रसाद के रूप में जलेबी, मिक्स सब्जी और पूड़ी का प्रसाद ग्रहण किया। दरअसल प्रत्यके वर्ष सप्तमी, अष्टमी व नवमी के दिन श्री बाबा मस्तनाथ की स्मृति में मठ परिसर में भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालुजन पहुंचते है। प्राचीन काल से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि बाबा मस्तनाथ की स्माधि पर जो भी भक्त सच्चे भाव से गुड़ और कंबल चढ़ाकर अपनी मनोकामना मांगता है, बाबा उसकी हर मुराद अवश्य पूरी करते हैं।
आठवीं शताब्दी में चौरंगीनाथ जी महाराज ने बाबा मस्तनाथ मठ की स्थापना की थी
बाबा मस्तनाथ मठ अस्थल बोहर की स्थापना परम सिद्ध शिरोमणि चौरंगीनाथ जी महाराज ने आठवीं शताब्दी में की थी। उस समय इस मठ का इतना वैभव था कि यहां से धर्म, संस्कृति, सभ्यता एवं समाज के अनेक विकास कार्यों हेतु 84 सिद्धों की पालकियां एक साथ निकलती थीं, किन्तु काल के प्रभाव से 13वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी के मध्य तक इस प्राचीन मठ की गरिमा एवं वैभव क्षीण होता चला गया। कालक्रम से विध्वस्त हुए इस मठ का 18वीं शताब्दी में पुन: जीर्णोद्धार परम सिद्ध शिरोमणि बाबा मस्तनाथ जी महाराज ने करवाया।
हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल/सुमन/संजीव
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