यदि सिखाें का इतिहास सही तरीके से लिख दिया जाए तो अपने आप सही हो जाएगा हिंदुओं का इतिहास: कुलपति

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यदि सिखाें का इतिहास सही तरीके से लिख दिया जाए तो अपने आप सही हो जाएगा हिंदुओं का इतिहास: कुलपति


नई दिल्ली, 26 दिसंबर (हि.स.)। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के सेंटर फॉर इंडिपेंडेंस एंड पार्टीशन स्टडीज (सीआईपीएस) ने 'वीर बाल दिवस' के उपलक्ष्य में साहिबजादों के सर्वोच्च बलिदान, उनके नैतिक पराक्रम और अद्वितीय वीरता पर केंद्रित एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक वाइस रीगल लॉज स्थित कन्वेंशन हॉल में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व राज्यसभा सांसद एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष सरदार तरलोचन सिंह उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की।

कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि यदि सिखों का इतिहास आज सही तरीके से लिख दिया जाए, तो हिंदुओं का इतिहास अपने आप सही हो जाएगा। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह उनकी प्रेरणा है कि पूरा देश इस महत्वपूर्ण दिन को आयोजित कर रहा है।

कुलपति ने कहा कि यह गाथा केवल इतिहास की एक घटना नहीं, बल्कि बलिदान, त्याग, तपस्या और राष्ट्रप्रेम की पराकाष्ठा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वीर बाल दिवस सिख शहादत को याद करने और उससे प्रेरणा लेने का दिन है। विश्व इतिहास में बलिदान की ऐसी कोई घटना न कभी हुई है और न कभी होगी। यह भारत को 'भारत' बनाने की गाथा है। उन्होंने यह भी कहा कि 'सिखों के दस गुरु' कहने की बजाय 'हमारे दस गुरु' कहना अधिक उचित है।

बाबा जोरावर सिंह के शब्दों को याद करते हुए कुलपति ने कहा कि हम धर्म के लिए मरना सीखकर आए हैं, डरना नहीं-हम मृत्यु स्वीकार करेंगे लेकिन इस्लाम नहीं।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सरदार तरलोचन सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने विभाजन के दर्द को पहली बार याद कराया और उसी कड़ी में आज का यह दिन नई जागृति का परिचायक है। उन्होंने इतिहास के पन्नों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि 1857 को आजादी की पहली लड़ाई माना जाता है, तो शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप का संघर्ष किस श्रेणी में आता है? उन्होंने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों ने बहुत छोटी आयु में जो सर्वोच्च बलिदान दिया, वह किसी भी क्रांति से बड़ा है।

सरदार तरलोचन सिंह ने स्पष्ट किया कि हम किसी धर्म के खिलाफ नहीं हैं क्योंकि गुरु ग्रंथ साहिब में सभी बराबर हैं, लेकिन हम जबरन धर्मान्तरण के सख्त खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि यह विडंबना है कि लंबे समय तक इस इतिहास को भुलाया गया, लेकिन अब गर्व का विषय है कि पूरा देश इस बलिदान को याद कर रहा है। उन्होंने बंदा बहादुर के कष्टों और उनके अडिग समझौते न करने वाले व्यक्तित्व का भी स्मरण किया और कहा कि गुरु नानक देव की शिक्षाएं ही भारत की आत्मा को जगाने वाली हैं।

इस अवसर पर साउथ कैम्पस की निदेशक प्रो. रजनी अब्बी, डीन ऑफ कॉलेजेज प्रो. बलराम पाणी, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता और एसओएल की निदेशक प्रो. पायल मागो सहित विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों के प्राध्यापक, प्राचार्य, शिक्षाविद, शोधार्थी और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / माधवी त्रिपाठी

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