समाज में अच्छे बदलाव के लिए स्त्री को खुद को भी बदलना होगाः मनु शर्मा
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (हि.स.)। राष्ट्रीय राजधानी के रोहिणी स्थित महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज परिसर में नारी शक्ति संगम : महिला - कल, आज और कल का आयोजन किया गया।
उत्तरी विभाग के एक दिवसीय 'महिला- कल, आज और कल' का यह विमर्श कार्यक्रम तीन सत्रों में था। उद्घाटन सत्र का विषय भारतीय चिंतन में महिला था जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनु शर्मा कटारिया ने बताया कि वैदिक काल से ही भारतीय महिलाओं को आध्यात्मिक अधिकार, पति चयन का अधिकार, शैक्षणिक अधिकार प्राप्त थे। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में नारी शक्ति की संपूर्ण व्याख्या मिलती है। भारतीय दर्शन में स्त्री और पुरुष को एक दूसरे का पूरक माना गया है। जिस देश की संस्कृति पूरकता और एकात्मकता में निहित है, वहां पुरुष और नारी के बीच बराबरी की बात उचित नहीं लगती, लेकिन मुगल काल और मैकाले शिक्षा पद्धति ने स्त्री पतन में मुख्य भूमिका निभाई। वर्ग संघर्ष को खत्म करने व समाज में एक नई जागृति के लिए आवश्यक है कि महिलाएं मानसिक रूप से सबल और स्वस्थ हों। समाज में अच्छे बदलाव के लिए स्त्री को स्वयं को भी बदलना होगा।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज की निदेशक प्रो. रजनी मल्होत्रा ढींगरा ने अपने वक्तव्य में कहा कि नारी शक्ति की ऊर्जा से ही सृष्टि बनी हुई है। नारी शक्ति ने हमेशा ही समाज को जागृत व सचेत किया है। अब आवश्यकता है कि नारी को परिवार का संरक्षक मानते हुए सम्मान दिया जाए। साथ ही नारी की शिक्षा ऐसी हो कि वह अपनी पहचान स्वयं बनाए। वास्तविकता तो यह है कि नर और नारी मिलकर ही शक्ति बनते हैं।
प्रथम सत्र के बाद चर्चा सत्र का आयोजन किया गया, जिसका विषय वर्तमान में महिलाओं की स्थिति, प्रश्न एवं करणीय कार्य थे। समापन सत्र का विषय भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका रही। इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर राष्ट्रीय सेवा भारती की अखिल भारतीय महामंत्री रेनू पाठक ने कहा कि भारत के विकास में प्रत्येक महिला को अपनी भूमिका तय करनी है। महिलाओं के लिए कुछ करणीय कार्य हो सकते हैं जैसे प्रत्येक महिला को अपने परिवार में भारतीय जीवन मूल्यों का संचार करते हुए भारतीय संस्कृति की सही जानकारी अगली पीढ़ी तक संप्रेषित करनी चाहिए। सामाजिक विकास के लिए राष्ट्रीय संपत्ति एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत रहना चाहिए।
सत्र की मुख्य अतिथि साध्वी समाहिता (साध्वी ऋतंभरा की शिष्या) ने कहा कि नारी तू ही नारायणी है। पुरुष के हर निर्णय में समाधान देने वाली स्त्री ही होती है। मातृशक्ति में कोई ग्रहण न लगने पाए, इसलिए ऐसे आयोजन निरंतर होने चाहिए। संस्कृति, श्रद्धा, शक्ति, मुक्ति और भक्ति जैसे सभी शब्द मातृशक्ति सूचक हैं। अब महिला को मुखर होकर खुद अपना चयन करना होगा। प्रत्येक माता अपनी बेटी का मित्र बनकर ही, उसको भ्रमित होने से रोक सकती है। जब पुरुष में मातृशक्ति का भाव जागता है तो वह देवता बन जाता है लेकिन जब स्त्री में पौरुष भाव जागता है तो वह स्त्री देवी बन जाती है।
हिन्दुस्थान समाचार/अनूप/पवन
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