मेलबर्न के प्रोफेसर ने की प्राचीन भारतीय सभ्यता के साथ इंडोनेशिया के सांस्कृतिक संबंधों की खोज

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मेलबर्न के प्रोफेसर ने की प्राचीन भारतीय सभ्यता के साथ इंडोनेशिया के सांस्कृतिक संबंधों की खोज


नई दिल्ली, 23 सितंबर (हि.स.)। मेलबर्न विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थॉमस रॉयटर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के आदिवासी अध्ययन केंद्र (सीटीएस) द्वारा आयोजित एक व्याख्यान में प्राचीन भारतीय सभ्यता के साथ इंडोनेशिया के सांस्कृतिक संबंधों की अपनी खोज को प्रस्तुत किया।

“इंडोनेशिया के बाली द्वीप के स्वदेशी लोग: इतिहास, रीति रिवाज और सामाजिक संगठन” विषय पर आयोजित इस चर्चा में प्रोफेसर थॉमस ने बताया कि बाली का समृद्ध इतिहास भारत के साथ जटिल रूप से जुड़ा हुआ है, जो पहली शताब्दी से शुरू होता है। इस द्वीप ने मुख्य रूप से ओडिशा के साथ लंबी दूरी के व्यापार के माध्यम से हिंदू सभ्यता के उदय को देखा। इस सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने बाली की ऑस्ट्रो-एशियाई सांस्कृतिक विरासत पर एक अमिट छाप छोड़ी। 7वीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म का उदय हुआ और 14वीं शताब्दी तक, हिंदू साम्राज्य अपने चरम पर पहुंच गया हालांकि, इस्लामी आक्रमणों के कारण इसका पतन हुआ।

प्रसिद्ध मानवविज्ञानी प्रो. रॉयटर ने इंडोनेशिया के स्वदेशी समुदायों में से बाली आगा नामक एक स्वदेशी अल्पसंख्यक जाति के बारे में जानकारी प्रस्तुत करते हुए उनके इतिहास, रीति रिवाजों और सामाजिक संगठन पर प्रकाश डाला। बाली आगा पर लिखित अपनी पुस्तकों, “कस्टोडियंस ऑफ दा सक्रेड माउंटेंस” और “दा हाउस ऑफ आवर एन्सिस्टर्स” से संदर्भ लेते हुए, प्रो. रॉयटर ने 14वीं शताब्दी के मजापहित हमले के बावजूद बाली आगा के लचीलेपन पर प्रकाश डाला। प्रो. रॉयटर ने पारंपरिक पदानुक्रमिक मॉडलों को चुनौती देते हुए और ऑस्ट्रोनेशियन समाजों में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हुए “थ्योरी ऑफ प्रेसेडेंस” प्रस्तुत की। इस अवसर पर आयोजित चर्चाओं से बाली आगा और स्वदेशी भारतीय समूहों के बीच संरचनात्मक और सांस्कृतिक समानताएं सामने आईं, जिनके द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत के बीच अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर प्रकाश डाला गया।

जनजातीय अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. सौमेंद्र मोहन पटनायक ने बताया कि व्याख्यान के बाद हुई चर्चाओं के दौरान, मानव विज्ञान विभाग के प्रतिभागियों और संकाय सदस्यों ने अंडमान द्वीप समूह, मणिपुर और पूर्वी भारत सहित भारत के अन्य हिस्सों में बाली आगा और स्वदेशी समूहों के बीच संरचनात्मक और सांस्कृतिक समानताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। प्रो. पटनायक ने आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत दर्शन और सनातन सांस्कृतिक परंपराओं के प्रभाव का हवाला देते हुए बाली और भारत की प्राचीन सभ्यता के बीच ऐतिहासिक और दार्शनिक संबंधों पर जोर दिया। हिंदी पखवाड़ा के हिस्से के रूप में आयोजित इस कार्यक्रम की व्यापक पहुंच के लिए इस व्याख्यान का हिंदी में अनुवाद भी किया गया।

सीटीएस संयुक्त निदेशक डॉ. अवितोली झिमो ने बताया कि यह व्याख्यान पूरे भारत में प्रसारित किया गया और भविष्य के संदर्भ के लिए दृश्य मानव विज्ञान प्रयोगशाला में संग्रहीत भी किया गया। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम आदिवासी अध्ययन केंद्र के स्वदेशी और भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के अंतर्संबंधों पर चल रहे शोध का हिस्सा है। मानव विज्ञान विभाग के पीसी बिस्वास हॉल में आयोजित इस कार्यक्रम में कई शिक्षाविद, संकाय सदस्य, शोधकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

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