'इस 'सुबह' से मिलकर कैसा लगा, बताइएगा जरूर '
नई दिल्ली, 28 दिसंबर (हि.स.)। साहित्य की आकाश गंगा की सशक्त हस्ताक्षर नीलम प्रभा का 'सुबह' पर लिखी 121 कविताओं का दूसरा किंतु पहला कविता संग्रह हाल ही में बाजार में आया है। उनका पहला संग्रह 'एक लम्हा दोपहर' खूब वाहवाही लूट चुका है। नीलम प्रभा 'सुबह' का जिक्र छिड़ते ही कहती हैं, इस काव्य संग्रह से मिलकर कैसा लगा, सुबह को जरूर बताइएगा। मजेदार बात यह है कि अपनी इस कृति का लोकार्पण उन्होंने खुद किया।
वह कहती हैं कि 'सुबह' का अनावरण दिन के प्रथम प्रहर को समर्पित रहा। इसे गुरुकुल प्रकाशन ने छापा है। वह कहती हैं, संतोष इसका है कि 'सुबह' में सवेरे के सत्व को पाठक महसूस कर रहे हैं। वह अपनी किताब 'अश्वत्थ' का भी जिक्र करती हैं। बताती हैं यह नाना प्रार्थनाओं का हरा- भरा सुरीला गुलदस्ता है। वह कहती हैं कि प्रार्थना ईश की ही नहीं की जाती। वह प्रकृति, स्वदेश, त्योहारों और रिश्तों की भी की जाती है। इसीलिए इसे धार्मिक समभाव और भाषाओं का संगम कहा जा सकता है। अश्वत्थ का अर्थ-पीपल होता है। यह दीर्घायु का प्रतीक है।
अश्वत्थ के बाद का रचनाकाल पर कहती हैं आदिकाल से आधुनिक काल और अब तक की हिंदी कविताओं के तीन खंडों में संपादित संकलन ने 'अविगत' नाम से जीवन पाया। इसके बाद विश्वस्तरीय कहानियों का चयन कर 'कथावली' के सात खंडों में उन्हें निबद्ध किया। वह फिर 'सुबह' पर लौटती हैं। कहती हैं-पौ सिर्फ फटती नहीं, हमें जीने का सलीका भी सिखाती है, सुबह मां है, सहचर है, मुर्शिद है, मुरीद है, कथा है, संवाद है...और भी बहुत कुछ है तो सुबह से मिलें, बात करें, सुबह यही एक बात बार-बार कहती है।
यह सवाल करने पर कि 'सुबह' का विचार कैसे पनपा? कुछ याद करते हुए रुककर कहती हैं, 'रीडर डाइजेस्ट के हिंदी संस्करण सर्वोत्तम में छपे एक अंश 'काश सुबह को भी पानी की तरह बोतलों में बंद कर दुकानों में रखा जा सकता तो वे सब उसे खरीद सकते जो सुबह से कभी मिल नहीं पाते।' मैंने सोचा कि मैं बोतलों में नहीं पर किताब में तो उसे बांध सकती हूं, फिर वे सुबह को खरीद पाएंगे।'
हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद
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