सीयूईटी के बाद डीयू की दाखिला प्रक्रिया हुई अधिक पारदर्शी और जवाबदेह: कुलपति

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सीयूईटी के बाद डीयू की दाखिला प्रक्रिया हुई अधिक पारदर्शी और जवाबदेह: कुलपति


नई दिल्ली, 17 दिसंबर (हि.स.)। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा है कि केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीयूईटी) लागू होने के बाद डीयू की दाखिला प्रक्रिया पहले की तुलना में कहीं अधिक तार्किक, पारदर्शी और जवाबदेह हो गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मौजूदा केंद्रीकृत प्रणाली के तहत अब हर स्टेकहोल्डर को प्रत्येक सीट की स्थिति की पूरी जानकारी उपलब्ध रहती है।

कुलपति ने बताया कि डीयू के कॉमन सीट एलोकेशन सिस्टम (सीएसएएस) के तहत हर आवंटन को सार्वजनिक किया जाता है और इसके लिए वैज्ञानिक व डेटा-आधारित प्रक्रिया अपनाई जाती है। उन्होंने कहा कि कम से कम आवंटन राउंड में अधिकतम सीटें भरने के उद्देश्य से कॉलेजों को अपनी सीट मैट्रिक्स पर पुनर्विचार करने की सलाह दी गई है।

कुछ कॉलेजों में स्नातक कार्यक्रमों की खाली सीटों को लेकर उठ रहे सवालों पर प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि यह स्थिति सीयूईटी के कारण नहीं है। डीयू दाखिला शाखा के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि सीयूईटी से पहले भी सीटें खाली रहती थीं। वर्ष 2019 में, जब 12वीं के अंकों के आधार पर दाखिले होते थे, तब कुल 70,735 उपलब्ध सीटों में से 68,213 ही भरी गई थीं और 3.56 प्रतिशत सीटें खाली रह गई थीं।

कुलपति ने कहा कि सीयूईटी आधारित दाखिलों के तहत इस वर्ष में कुल 71,642 सीटों के मुकाबले 72,229 दाखिले हुए हैं, यानी स्वीकृत क्षमता से 0.65 प्रतिशत अधिक। उन्होंने कहा कि यह आंकड़े दर्शाते हैं कि पहले कट-ऑफ आधारित प्रणाली में दाखिलों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। कई मामलों में तय क्षमता से कई गुना अधिक दाखिले हो जाते थे, जिससे अव्यवस्था पैदा होती थी।

प्रो. योगेश सिंह ने बताया कि नए सिस्टम में कॉलेज यह तय कर सकते हैं कि वे किसी कोर्स में कितनी अतिरिक्त सीटें देना चाहते हैं। यह पूरा डेटा एल्गोरिदम (नुस्खे) के जरिए प्रोसेस किया जाता है, जिससे अधिक या कम दाखिलों की समस्या को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है। साथ ही, प्रोग्राम की लोकप्रियता का अनुमानित विश्लेषण कर विश्वविद्यालय अपनी दाखिला नीति को और प्रभावी बना सकता है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कॉलेज अपने बीए प्रोग्राम के कॉम्बिनेशन में बदलाव की संभावनाएं तलाशते हैं, तो किसी भी कोर्स को बंद नहीं किया जाएगा। विश्वविद्यालय का उद्देश्य यही है कि कम से कम आवंटन राउंड में अधिक से अधिक सीटें भरी जा सकें और दाखिला प्रक्रिया सुचारु बनी रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / माधवी त्रिपाठी

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