तीजराम केंवट का सहारा बनी मनरेगा डबरी

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तीजराम केंवट का सहारा बनी मनरेगा डबरी


तीजराम केंवट का सहारा बनी मनरेगा डबरी


कोरबा/जांजगीर-चांपा 18 दिसम्बर (हि. स.)। महात्मा गांधी नरेगा योजना के अंतर्गत बनी निजी डबरी भले ही फोटोबाई केंवट के नाम पर स्वीकृत रही हो, लेकिन परिस्थितियों ने इसे तीजराम के जीवन का सबसे बड़ा सहारा बना दिया। पत्नी के निधन के बाद तीजराम के लिए जीवन अचानक खाली-सा हो गया था। घर, खेती और परिवार सब कुछ एक साथ संभालना उनके लिए आसान नहीं था। ऐसे समय में यही डबरी उनके संघर्ष की साथी बन गई। जिले के एक साधारण से गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत किया गया निजी डबरी निर्माण आज ग्रामीण आजीविका का सशक्त उदाहरण बनकर सामने आया है।

जनपद पंचायत अकलतरा की ग्राम पंचायत बनाहिल में हितग्राही मूलक कार्य के रूप में स्वीकृत यह डबरी न केवल रोजगार का साधन बनी, बल्कि एक परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूती देने का आधार भी बनी। मनरेगा योजना अंतर्गत 1,58,278 रूपये की प्रशासकीय स्वीकृति के साथ यह कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया। कुल 1,48,192 रूपये की लागत से सम्पन्न इस कार्य में 52 परिवारों द्वारा 842 मानव दिवस का सृजन हुआ। इससे न केवल ग्रामीणों को रोजगार मिला, बल्कि जल संरक्षण जैसी महत्वपूर्ण आवश्यकता की भी पूर्ति हुई। डबरी निर्माण से क्षेत्र में जल संग्रहण, भू-जल स्तर में सुधार और आसपास के खेतों को सिंचाई सुविधा भी मिली।

डबरी निर्माण कार्य ग्राम पंचायत, रोजगार सहायक एवं तकनीकी सहायक के समन्वय से पूरी पारदर्शिता और गुणवत्ता के साथ सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम अधिकारी, सरपंच, रोजगार सहायक एवं तकनीकी सहायक के मार्गदर्शन में यह कार्य ग्राम पंचायत के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गया है। आज यह सफलता की कहानी अन्य ग्रामीणों के लिए संदेश है कि मनरेगा केवल मजदूरी नहीं, बल्कि स्थायी आजीविका और आत्मनिर्भरता का माध्यम है। निजी डबरी निर्माण जैसे कार्य अपनाकर ग्रामीण न केवल रोजगार पा सकते हैं, बल्कि खेती, मछली पालन और जल संरक्षण के माध्यम से अपने भविष्य को सुरक्षित भी बना सकते हैं। यही कारण है कि यह कहानी पढ़कर अन्य ग्रामीण भी आगे आकर डबरी निर्माण जैसे कार्यों को अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।

तीजराम कहते हैं पत्नी फोटोबाई के निधन के बाद भी यह उनकी याद को संजोए हुए है आज यही मेरी ताकत है। इसी के सहारे मैं खेती कर पा रहा हूँ और परिवार का पालन पोषण कर रहा हूं। आज तीजराम की यह मार्मिक यात्रा गांव के अन्य लोगों को भी प्रेरित कर रही है कि निजी डबरी जैसे कार्य अपनाकर वे भी अपने जीवन को आत्मनिर्भर और सुरक्षित बना सकते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ हरीश तिवारी

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हिन्दुस्थान समाचार / हरीश तिवारी

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