प्रथा : कुर्सीघाट बोराई में पारंपरिक तरीके से हुई पूजा-अर्चना

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प्रथा : कुर्सीघाट बोराई में पारंपरिक तरीके से हुई पूजा-अर्चना


प्रथा : कुर्सीघाट बोराई में पारंपरिक तरीके से हुई पूजा-अर्चना


प्रथा : कुर्सीघाट बोराई में पारंपरिक तरीके से हुई पूजा-अर्चना


धमतरी, 1 सितंबर (हि.स.)। नगरी मुख्यालय से लगभग 28 किमी दूर छत्तीसगढ़-ओडिशा राज्य की सीमा पर आदिवासी पंरपरा का निर्वहन करते हुए शनिवार को कोर्ट लगाकर देवी विग्रहों को सजा दी गई। कुर्सीघाट बोराई में आदिवासी देव विग्रहों की न्यायाधीश भंगा राव माई का जात्रा हुआ। भादो महीने में अपनी अदालत लगाई और गलती करने वाले देव विग्रहों को सजा दी गई।

इस जात्रा में 20 कोस बस्तर और सात पाली ओडिशा समेत 16 परगना सिहावा के देवी-देवता शामिल हुए। बताया गया कि भंगा राव माई आदिवासी देवी-देवताओं की प्रमुख हैं। जिला पंचायत सदस्य मनोज साझी ने बताया कि यह अनोखी प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसमें सभी समुदाय और वर्गों की आस्था जुड़ी है। कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई में यह जात्रा हुई। कुर्सीघाट बोराई में आदिवासी देव विग्रहों की न्यायाधीश भंगा राव माई की जात्रा कार्यक्रम हुआ। विधि-विधान के साथ परंपरा का निर्वहन किया गया। इस जगह पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है। मान्यता है कि भंगा राव माई की अनुमति के बिना देवी-देवता भी कोई काम नहीं कर सकते। अगर देव विग्रहों अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते हैं तो शिकायत के आधार पर कार्रवाई की जाती है।

आदिवासी समाज युवा प्रभार के संरक्षक व जिला पंचायत सदस्य मनोज साक्षी ने बताया कि जात्रा में गांवों से आए शैतान, देवी और देवताओं की शिनाख्त की जाती है। इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाईनुमा गहरे गड्ढे के किनारे फेंक दिया जाता है। इसे ग्रामीण कारागार (जेल) कहते हैं। उन्होंने बताया कि पूजा के बाद आरोपी देवी-देवताओं के केस की सुनवाई होती है। आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने के लिए सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते हैं। आरोप सिद्ध होने पर सजा सुनाई जाती है। गांव वालों ने बताया किइस साल की जात्रा इसलिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि कई पीढ़ी बाद इस बार देव ने अपना चोला बदला है। प्रक्रिया के दौरान देव विग्रहों को भी कटघरे में खड़ा किया जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा

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