उदयगामी सूर्य भगवान को अर्ध्य देकर छठ पर्व का किया गया परायण
जगदलपुर, 20 नवंबर(हि.स.)। जिले में सूर्योपासना का चार दिवसीय छठ पूजा-सूर्य षष्ठी की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ था। धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व छठ मनाने के लिए गंगामुड़ा, दलपत सागर एवं इंद्रवती नदी के तटों में गहमा-गहमी रही। जहां व्रतियों ने घाटों में पानी के अंदर खड़े होकर सूर्य के उदय होने का इंतजार करते रहे।सूर्योदय के साथ ही आज सुबह उगते सूर्य-भगवान भास्कर को अर्ध्य देकर विगत चार दिनों से जारी छठ पर्व का परायण किया गया।
मूलत: उत्तरप्रदेश और बिहार में मनाए जाने वाला छठ पर्व की मान्यता के अनुसार इसकी शुरुआत महाभारत काल में हुई। जिसमें सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा की। सूर्यपुत्र कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। सूर्य देव की आराधना और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की जाती है। छठ पूजा का प्रारंभ दो दिन पूर्व चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होता है, फिर पंचमी को लोहंडा और खरना होता है। उसके बाद षष्ठी तिथि को छठ पूजा की जाती है, जिसमें सूर्य देव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फिर छठ पर्व का परायण करके व्रत को पूरा किया जाता है। नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस लोक पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है।
हिन्दुस्थान समाचार/ राकेश पांडे
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