जगदलपुर : नक्सली बस्तर के विधानसभा चुनाव परिणाम को अघोषित तौर पर करते हैं प्रभावित

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जगदलपुर : नक्सली बस्तर के विधानसभा चुनाव परिणाम को अघोषित तौर पर करते हैं प्रभावित


बस्तर में नक्सलवाद के वजूद का इसे भी माना जाता है एक कारण

जगदलपुर, 09 अक्टूबर (हि.स.)। विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग के सभी 12 सीटों पर पहले चरण में 07 नवंबर को मतदान की घोषणा के बाद चुनावी सरगर्मी बढ़ने लगेगी। जैसा कि यह सर्व विदित है कि चुनाव जीतने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाई जाती है। बस्तर के विधानसभा चुनाव में नक्सलियों का अघोषित तौर पर चुनाव जीतने के लिए उपयोग होता रहा है। नक्सली दोहरे रणनीति पर काम करते हैं, एक तरफ तो चुनाव का बहिष्कार करते हैं, वहीं दूसरी ओर अपने हित-लाभ के अनुसार किसी भी दल के उम्मीदवार को अघोषित समर्थन कर चुनाव परिणाम को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।

बस्तर संभाग के 12 विधानसभा सीटों में 03 सीट सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित है, वहीं 07 सीटों में चित्रकोट, नारायणपुर, कोंड़ागांव, केशकाल, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर, कांकेर, में लगभग आधे या उससे अधिक इलाकों में नक्सलियों का प्रभाव माना जाता है। इसमें मात्र 01 सीट जगदलपुर आंशिक नक्सल प्रभावित है और मात्र 01 सीट बस्तर विधानसभा ही नक्सल प्रभावित नहीं होना माना जाता है। जितने इलाकों में नक्सलियों का ज्यादा या कम प्रभाव है, उतना प्रभाव विधानसभा चुनाव के परिणामों में देखने को मिलता है। तीन दशक के बाद भी इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की मौजूदगी के बावजूद बस्तर में नक्सलवाद के वजूद का यह भी एक कारण माना जाता है।

बस्तर संभाग के चुनावी बिसात पर नक्सलियों के ज्यादा प्रभाव वाले इलाके जिसमें सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा में नक्सली अपने अघोषित फरमान से हार-जीत को प्रभावित करते रहे हैं। यह नक्सलियों के रुख पर निर्भर करता है कि जिस भी पार्टी के उम्मीदवारों को नक्सली अपना अघोषित समर्थन देते हैं उनकी जीत में नक्सली बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसे समझने के लिए नक्सलियों के कोर एरिया में जहां नक्सलियों का दबदबा होता है, वहां नक्सली जिसके पक्ष में मतदान करवाने का फरमान जारी करते हैं, वह उम्मीदवार सबसे ज्यादा फायदे में रहता है।

नक्सली एक तरफ चुनाव का बहिष्कार करते हैं, लेकिन दूसरी ओर वह इस चुनावी राजनीति से दूर भी नहीं होते हैं। नक्सलियों के कोर इलाकों में वही प्रत्याशी या उस उम्मीदवार के कार्यकर्ता प्रवेश कर सकते हैं, जिन्हें नक्सलियों का समर्थन मिलता है। नक्सली इलाकों में भाजपा को बहुत कम समर्थन मिलता है, जब तक कांग्रेस के उम्मीदवार से नक्सली नाराज ना हो तब तक भाजपा को यहां समर्थन मिलना नामुमकिन होता है। जिसका परिणाम भी हमें विगत चुनाव में देखने को मिला है। भाजपा के 15 वर्ष के शासनकाल में नक्सलियों पर भाजपा ने जितना दबाव बनाया था, उसका खामियाजा बस्तर के 12 विधानसभा सीटों में से 11 विधानसभा सीटों में हार का सामना करना पड़ा था। वर्तमान में कांग्रेस सत्ता में है और कांग्रेस के किन विधायकों से नक्सलियों की नाराजगी है, यदि उन्हें पुन: टिकट मिलता है, तो उनकी हार सुनिश्चित होगी।

हिन्दुस्थान समाचार/राकेश पांडे

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