नारायणी स्वरूप में विराजित मां दंतेश्वरी को काढ़े से स्नान करवाकर लक्ष्मी स्वरूप में की गई पूजा
दंतेवाड़ा, 12 नवंबर(हि.स.)। जिला मुख्यालय में स्थित दंतेश्वरी मंदिर में दीपावली पर बस्तर की आराध्य देवी-दंतेश्वरी की पूजा लक्ष्मी स्वरूप में होती है, जबकि मां दंतेश्वरी की पूजा वर्ष भर आदिशक्ति के रुप में होती है। दीपावली से पहले 9 दिनों तक तुलसी पानी विधान के तहत परंपरानुसार पुजारी ब्रम्ह मुहूर्त में मां दंतेश्वरी की पूजा माता लक्ष्मी के रुप में करते हैं। एक ही देवी की अलग-अलग मौके पर अलग-अलग रूप में आराधना करने वाला संभवत: यह देश का पहला मंदिर है। दीपावली के शुभ अवसर पर आज रविवार को ब्रम्ह मुहूर्त में मां दंतेश्वरी को जड़ी-बूटियों से बने औषधी काढ़े से स्नान करवाया गया है।
प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया के अनुसार दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी, नारायणी स्वरूप में विराजित हैं। यही वजह है कि यहां पर मंदिर के सामने गरूड़ स्तंभ स्थापित है, जो अन्यत्र किसी भी देवी मंदिर नहीं मिलता है। तुलसी पूजन में कार्तिक चतुर्दशी तक लगातार दंतेश्वरी सरोवर से पानी लाकर देवी को स्नान कराया जाता है। लक्ष्मी पूजा की पूर्व संध्या पर मंदिर में सेवा देने वाले कतियार काढ़ा तैयार करने जंगल से तेजराज, कदंब की छाल, छिंद का कद और अन्य जड़ी बूटियां लेकर आते हैं। औषधियों को मंदिर के भोगसार यानी भोजन पकाने के कक्ष में उबालकर काढ़ा तैयार किया जाता है। अगली सुबह यानी दीपावली की सुबह आज रविवार को ब्रह्ममुहूर्त में देवी को इसी काढ़े से स्नान करवाया गया और मां दंतेश्वरी को लक्ष्मी स्वरूप में पूजन संपन्न किया गया। इसके साथ ही 9 दिनों तक ब्रह्म मुहूर्त में होने वाली तुलसीपानी पूजा का समापन हो जाता है।
हिन्दुस्थान समाचार/राकेश पांडे
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