नारायणपुर : अबूझमाड़ में 06 महीने से जारी धरना स्थल को ही ग्रामीणों ने बना लिया अपना आशियाना

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नारायणपुर : अबूझमाड़ में 06 महीने से जारी धरना स्थल को ही ग्रामीणों ने बना लिया अपना आशियाना


नारायणपुर, 12 मई (हि.स.)। जिले के अबुझमाड़ जंगल में ईरकभट्टी, तोयमेटा, ढोंडरीबेड़ा और ओरछा के नदी पारा में लगभग 06 महीने से ग्रामीण धरने पर बैठे हैं। धरने पर बैठे ग्रामीण इसलिए धरना-प्रर्दशन नहीं कर रहे कि उन्हें सुख-सुविधाएं क्षेत्र में विकास चाहिए, इसके विपरीत उनकी मांग यह है कि उन्हें केंद्र या राज्य सरकारों से थोपा हुआ विकास नही चाहिए, विकास मिले लेकिन ऐसा नहीं कि जंगल बर्बाद हो जाएं।

ग्रामीणों के इस धरना-प्रर्दशन को नक्सलियों द्वारा चलाये जाने की बात कही जाती है, ग्रामीणों के खाने-पीने की सामग्री व अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था भी नक्सलियों के द्वारा किये जाने की बात भी कही जाती है। धरना स्थल पर एक समय में तीन से चार सौ ग्रामीण रहते हैं, भीड़ ऐसी बढ़ी कि धरनास्थल पर धीरे-धीरे बस्ती बस गई है। बारिश और गर्मी की तपिश से राहत पाने एवं भोजन बनाने के लिए झोपड़ी का निर्माण कर अपने लिए आशियाना ही बना लिया है।

गौरतलब है कि इन ग्रामीणों की मांगो को लेकर शासन-प्रशासन कब सुध लेगा या फिर यह प्रदर्शन आखिर कब तक जारी रहेगा। ज्ञात हो कि नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के 36 ग्राम पंचायतों के ग्रामीण पेशा कानून लागू करने, वन अधिनियम 2022 के संशोधन वापस लेने, ग्रामसभा की अनुमति बगैर खोले जा रहे नए कैप बंद करने सहित विभिन्न मांग के साथ अबूझमाड़ के अंदरूनी गांवों से परिवार समेत आए ग्रामीण घने जंगलों के बीच ईरकभट्टी , तोयमेटा , ढोंडरीबेड़ा और ओरछा के नदी पारा में 24 घंटे धरनास्थल पर ही रहते हैं। सभी ग्रामीण अपना राशन अपने साथ लाते है, और धरनास्थल पर ग्रामीण कुछ-कुछ दिन की पारी बांधकर रहते हैं। हर ग्रामीण जब घर से आता है तो राशन लेकर आता है। शाम को धरनास्थल के बीच में बने मंच पर सभा व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस तरह ग्रामीणों ने धरना स्थल को ही अपना घर बना लिया है।

ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होगी उनका प्रदर्शन जारी रहेगा। ग्रामीणों का कहना है कि हम आज सिर्फ इसलिए जुटे हैं कि आने वाली पीढ़ी भी अबूझमाड़ के जंगल देख सके। बस्तर का आदिवासी गरीब नहीं है, उसके पास इतना संसाधन है कि बड़े-बड़े उद्योगपति उसे पाने का लालच करते हैं। लेकिन आदिवासी को अपना जल, जंगल,जमीन बेचना नहीं है। हमारे पहाड़, जंगल हमारे देवी देवता है, जो हमारे जीवन यापन के संसाधन उपलब्ध कराते है। नए पुलिस कैंपो का विस्तार कर हमारे जल जंगल जमीन हमसे छीनने की सरकार की साजिश है, इसलिए पहाड़ी का सीना चीरकर लोहा निकालकर ले जा रहे है। अगर जंगल नही रहेंगे तो हम अपना जीवन यापन कैसे करेंगे जंगल से मिलने वाले वनोपज हमारा सहारा है।

हिन्दुस्थान समाचार/राकेश पांडे

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