अर्ध रात्रि में रथ चुराने की रस्म के साथ कुम्हड़ाकोट जंगल लाया गया बस्तर दशहरा रथ

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अर्ध रात्रि में रथ चुराने की रस्म के साथ कुम्हड़ाकोट जंगल लाया गया बस्तर दशहरा रथ


अर्ध रात्रि में रथ चुराने की रस्म के साथ कुम्हड़ाकोट जंगल लाया गया बस्तर दशहरा रथ


जगदलपुर, 25 अक्टूबर(हि.स.)। बस्तर दशहरा के दुमंजिला आठ पहियों वाले रथ को प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी 24 अक्टूबर को रात्रि लगभग 11 बजे भीतर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान के बाद आठ पहियों वाले रथ को अर्ध रात्रि के बाद चुराकर शहर के पास स्थित कुम्हड़ाकोट के जंगल लाने की रियासतकालीन परंपरा का निर्वहन करते हुए कुम्हड़ाकोट जंगल लाया गया, यहां आज बुधवार को राजपरिवार के सदस्यों के साथ ग्रामीण नवाखानी पूजा विधान संपन्न किये जाने का क्रम दिनभर चलता रहेगा, इसके उपरांत कुम्हड़ाकोट जंगल से बाहर रैनी पूजा विधान के तहत मां दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढ़ कर देर रात्रि में रथ की वापसी दंतेश्वरी मंदिर के सिंहद्वार में होगी। विदित हो कि अर्धरात्रि में आठ पहियों वाले रथ को चोरी कर ले जाने और वापसी की परंपरा के निर्वहन में बास्तानार-कोड़ेनार क्षेत्र के 33 गांवों के करीब 500 माडिय़ा जनजाति के ग्रामीण शामिल हुए।

बस्तर दशहरा में रथ चुराने की रस्म की शुरूआत शताब्दियों पहले बास्तानार कोड़ेनार-क्षेत्र के माडिय़ा जनजाति के ग्रामीणों के द्वारा अंजाम दिया गया था, तब से यह बस्तर दशहरा की रियासतकालीन परंपरा बन गई। रियासत काल में बस्तर महाराजा के प्रति ग्रामीणों के अगाध आस्था और विश्वास को प्रर्दशित करने के लिए ग्रामीणों के द्वारा रथ चुराकर स्वयं ले जाने के बाद बस्तर महाराजा को अपने नियत स्थान पर बुलाकर वहां पर बस्तर महाराजा के साथ राजा नवाखानी पूजा विधान के बाद मां दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढक़र राजमहल वापस लाने से जुडा़ हुआ है।

बस्तर दशहा में रथ को कुम्हड़ाकोट के जंगल में ले जाने के कारण रथ परिक्रमा के दायरे से बाहर हो जाता है, कुम्हड़ाकोट से बस्तर दशहा रथ की वापसी की रियासतकालीन परंपरा को बाहर रैनी पूजा विधान कहा जाता है। कुम्हड़ाकोट से बस्तर दशहरा रथ की वापसी की प्रक्रिया बास्तानार-कोड़ेनार के माडिय़ा जनजाति के ग्रामीणों के भोजन उपरांत देर रात शुरू होती है, यह प्रक्रिया 25 अक्टूबर की देर रात्रि को संपन्न की जायेगी, जिस मार्ग से रथ को कुम्हड़ाकोट ले जाया जाता है उसी मार्ग से वापस रथ को राजमहल सिंहद्वार के सामने खड़ा कर मां दंतंश्वरी के छत्र को मंदिर में स्थापित करने के साथ ही बस्तर दशहरा में रथ परिचालन संपन्न हो जाता है। इसके बाद बस्तर दशहरा अपने अंतिम पड़ाव में काछन जात्रा, कुटुब जात्रा के साथ बस्तर संभाग सहित पड़ोसी प्रदेश से आमंत्रित देवी-देवताओं की विदाई का क्रम शुरू हो जायेगा, इसी बीच मुरिया दरबार का अयोजन के बाद दंतेवाड़ा से यहां पंहुची मावली माता की डोली व माता के छत्र की विदाई 31 अक्टूबर को होने के साथ ही बस्तर दशहरा अगले वर्ष के लिए परायण के साथ संपन्न हो जायेगा।

हिन्दुस्थान समाचार/ राकेश पांडे

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