बस्तर लोकसभा सीट से सर्वाधिक 11 उम्मीदवार के चुनाव लड़ने का बना नया रिकार्ड
इससे पहले वर्ष 1970 में हुए लोकसभा चुनाव में 10 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे
जगदलपुर, 07 अप्रैल (हि.स.)। बस्तर लोकसभा सीट का रिकॉर्ड हमेशा से रोचक रहा है। कभी यहां सबसे ज्यादा बार निर्दलीय उम्मीदवार सांसद बनते हैं तो कभी सबसे कम उम्मीदवारों के बीच मुकाबले का रिकॉर्ड बनता है। वर्ष 2024 के मौजूदा चुनाव में नया रिकॉर्ड बना है। पहली बार ऐसा हो रहा है जब बस्तर लोकसभा सीट से सर्वाधिक 11 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे हैं। इससे पहले साल 1970 में हुए लोकसभा चुनाव में 10 उम्मीदवार मैदान में थे, तब नौ उम्मीदवार निर्दलीय और एक मात्र उम्मीदवार जनसंघ से बलीराम कश्यप अकेले दलीय उम्मीदवार थे। उस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार लंबोदर बलीहार लोकसभा का चुनाव जीते थे। बस्तर लोकसभा सीट में सर्वाधिक 11 लोकसभा के उम्मीदवार का नया इतिहास दर्ज हो गया है। इस बार के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अलावा बसपा, भाकपा समेत अन्य क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवार मैदान में हैं, वहीं दो निर्दलीय सहित 11 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।
देश की आजादी के बाद वर्ष 1952 से लेकर वर्ष 1971 तक बस्तर लोकसभा सीट के चुनावों में यहां बस्तर रियासत के तत्कालीन अंतिम महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव के प्रभाव से बस्तर लोकसभा में निर्दलीय प्रत्याशी जीतकर आते रहे। अंतिम महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव की हत्या 25 मार्च 1966 की रात पुलिस फायरिंग में होने के बाद भी इसका प्रभाव वर्ष 1971 तक जारी रहा। इसके बाद बस्तर की राजनैतिक परिस्थिति बदलने लगी और बस्तर की राजनीति में वर्तमान में सिर्फ दो राष्ट्रीय राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा के बीच में ही मुख्य मुकाबला होता है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के महेश कश्यप और कांग्रेस के कवासी लखमा के बीच ही मुख्य मुकाबला है।
बस्तर लोकसभा सीट का यह भी रिकार्ड रहा है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश की सत्ता में जो भी काबीज होता है, बस्तर लोकसभा सीट का परिणाम उसी के पक्ष में जाता रहा है। इसे समझने के लिए इतना ही काफी होगा कि वर्ष 2019 के लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद बस्तर लोकसभा सीट से कांग्रेस के दीपक बैज चुनाव जीत गये थे, तब छत्तीसगढ़ प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस के भूपेश बघेल की सरकार थी। बस्तर की राजनीति में लोकसभा का चुनाव जिसकी भी सत्ता छत्तीसगढ़ प्रदेश में होती है, उसको इसका फायदा मिलता है। इसका मुख्य कारण यह है कि बस्तर लोकसभा सीट का क्षेत्रफल बड़ा और विस्तारित होने से उम्मीदवारों को मतदाताओं तक पहुंचकर अपनी बात रखने के लिए संगठन की आवश्यकता होती है। दोनों ही राजनीतिक दलों के बीच कांग्रेस और भाजपा के संगठन सभी जगह होने से मुकाबला दोनों के बीच ही देखा जाता है। एक समय था जब बस्तर लोकसभा सीट पर निर्दलियों का बोल-बाला था, आज निर्दलीयों व अन्य अपनी जमानत बचा लेने से वह उनकी उपलब्धि मानी जायेगी। इस चुनाव में रिकार्ड 11 उम्मीदवार मैदान में होने के बावजूद इस सीट पर मुकाबला रोचक होने जैसी स्थिति नहीं बन रही है।
हिन्दुस्थान समाचार/ राकेश पांडे
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