जगदलपुर : भीतर रैनी रथ परिक्रमा के बाद आज देर रात्रि में होगी बस्तर दशहरा रथ चुराने की रस्म
जगदलपुर, 05 अक्टूबर (हि.स.)। बस्तर दशहरा के दुमंजिला आठ पहियों वाले रथ को प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी 05 अक्टूबर को भीतर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान के बाद आठ पहियों वाले रथ को चुराकर शहर के पास स्थित कुम्हड़ाकोट के जंगल में ले जाने की रियासतकालीन परंपरा का निर्वहन बुधवार देर रात्रि में संपन्न किया जायेगा। आठ पहियों वाले रथ को चोरी कर ले जाने की परंपरा के तहत बास्तानार कोड़ेनार क्षेत्र के 33 गांवों के करीब 500 माड़िया जनजाति के ग्रामीण राजमहल के सामने खड़े रथ को खींचते हुए कुम्हड़ाकोट ले जाते हैं। बस्तर दशहरा के रियासतकालीन परम्परानुसार भीतर रैनी-बाहर रैनी रथ परिचालन की जिम्मेदारी बास्तानार कोड़ेनार-क्षेत्र के 33 गांवों के माड़िया जनजाति के ग्रामीण प्रति वर्ष इसका निर्वहन शताब्दियों से करते चले आ रहे हैं।
बस्तर दशहरा में रथ चुराने की रस्म की शुरुआत शताब्दियों पहले बास्तानार कोड़ेनार-क्षेत्र के माड़िया जनजाति के ग्रामीणों के द्वारा अंजाम दिया गया था, तब से यह बस्तर दशहरा की रियासतकालीन परंपरा बन गई। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि बस्तर महाराजा के प्रति ग्रामीणों के अगाध आस्था और विश्वास का प्रतीक है। ग्रामीणों के द्वारा रथ चुराकर स्वयं ले जाने के बाद बस्तर महाराजा को अपने नियत स्थान पर बुलाकर वहां पर बस्तर महाराजा के साथ राजा नवाखानी पूजा विधान के बाद मां दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढ़कर राजमहल वापस लाने से जुडा़ हुआ है। तब से कुम्हड़ाकोट में राजपरिवार राजा नवाखानी की परंपरा का निर्वहन करता चला आ रहा है।
बस्तर दशहरा में रथ को कुम्हड़ाकोट के जंगल में ले जाने के कारण रथ परिक्रमा के दायरे से बाहर हो जाता है, कुम्हड़ाकोट से बस्तर दशहरा रथ की वापसी की रियासतकालीन परंपरा को बाहर रैनी पूजा विधान कहा जाता है। कुम्हड़ाकोट से बस्तर दशहरा रथ की वापसी की प्रक्रिया बास्तानार-कोड़ेनार के माड़िया जनजाति के ग्रामीणों के भोजन उपरांत देर रात शुरू होती है। यह प्रक्रिया 06 अक्टूबर की देर रात्रि को संपन्न की जायेगी, जिस मार्ग से रथ को कुम्हड़ाकोट ले जाया जाता है उसी मार्ग से वापस रथ को राजमहल सिंहद्वार के सामने खड़ा कर मां दंतंश्वरी के छत्र को मंदिर में स्थापित करने के साथ ही बस्तर दशहरा में रथ परिचालन संपन्न हो जाता है। इसके बाद बस्तर दशहरा अपने अंतिम पड़ाव में काछन जात्रा, कुटुब जात्रा के साथ बस्तर संभाग सहित पड़ोसी प्रदेश से आमंत्रित देवी-देवताओं की विदाई का क्रम शुरू हो जायेगा। इसी बीच मुरिया दरबार का आयोजन के बाद दंतेवाड़ा से यहां पहुंची मावली माता की डोली व माता के छत्र की विदाई 11 अक्टूबर को होने के साथ ही बस्तर दशहरा अगले वर्ष के लिए परायण के साथ संपन्न हो जायेगा।
हिन्दुस्थान समाचार/राकेश पांडे

