नारायणपुर : अबूझमाड़ का दुर्लभ भृंगराज पक्षी का पंख अबूझमाड़ियों का सरताज

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नारायणपुर : अबूझमाड़ का दुर्लभ भृंगराज पक्षी का पंख अबूझमाड़ियों का सरताज


नारायणपुर : अबूझमाड़ का दुर्लभ भृंगराज पक्षी का पंख अबूझमाड़ियों का सरताज


नारायणपुर : अबूझमाड़ का दुर्लभ भृंगराज पक्षी का पंख अबूझमाड़ियों का सरताज


नारायणपुर : अबूझमाड़ का दुर्लभ भृंगराज पक्षी का पंख अबूझमाड़ियों का सरताज


नारायणपुर, 23 जनवरी (हि.स.)। जिले के अबूझमाड़ के जंगलों में पाये जाने वाले भृंगराज पक्षी के संबंध में पक्षियों जानकार एवं पर्यावरणविद डॉ. सतीश जैन बताया कि इस पक्षी को गोंडी बोली में पाहंडूड पिट्टे, बीमेड पिट्टे के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी में ग्रेटर रैकेट-टेलड ड्रोंगो व वैज्ञानिक नाम डायक्रुरस पैराडाइसियस यह ड्रोंगो परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही डिक्रूराईडी परिवार के सदस्य हैं। इस पक्षी के पूंछ बहुत ही सुन्दर होती है, इसके पूंछ में दो लम्बे पंख होते हैं जो अबूझमाड़ के आदिवासियों का सरताज होता है। जंगल में भृंगराज पक्षी को अबूझमाड़ के विभिन्न हिस्सों में देखा सकता है पर आज भी इन भागो में थुलथूली, हितावाड़ा, हन्दावाडा, नेडनार (टोहनार), नेलनार, कुतुल, धुरबेडा, दोबे, जाटलूर, फरसबेड़ा, बेचा, कोहकमेटा, मोंहादी, कच्चापाल, गोमांगल दूर घने जंगलो में दिखाई देता है।

उन्होंने बताया कि अबूझमाड़ में पाये जाने वाले इस दुर्लभ पक्षी के सिर पर ताज और लम्बी दुम के बाद जिसके दो लम्बे पंख जो पतले पर अंत में सुंदर रूप लिए, बहुत मीठी आवाज के इस पंछी नाम जिसको भृंगराज और भीमराज के नाम से भी जाना जाता है। मांदर की थाप के बीच सिर पर पगड़ी व इन पक्षियों के पंखो से बने गुबा इन आदिवासियों के लिए एक सरताज है। जिसे आदिवासी अपने आने वाली पीढ़ी को एक तोफा स्वरुप भेंट करते हैं। इन पक्षियों के पंखों को नृत्य करते समय सिर पर पगड़ियों के बीच लगते हैं। महिलायें भी इसे अपने सिर के पीछे लगाती हैं, जो इन नृत्यांगनाओं को बहुत ही सुन्दर शोभायमान बनाती है। गोटुल परंपरा के विलुप्त होने के साथ ही भृंगराज के पंख से बने मुकुट धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। इसे गोंड, माड़िया, मुरिया, दण्डामी माड़िया जनजाति के लोग अपने नृत्य के दौरान उपयोग करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/राकेश पांडे

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