बस्तर गोंचा महापर्व में भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी को 56 भोग का किया गया अर्पण

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बस्तर गोंचा महापर्व में भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी को 56 भोग का किया गया अर्पण


रसगुल्ला से प्रारंभ होकर इलायची के साथ 56 व्यंजन का अर्पण कहलाता है छप्पन भोग

जगदलपुर, 12 जुलाई (हि.स.)। बस्तर गोंचा महापर्व के रियासतकालीन परंपरानुसार आज शुक्रवर देर शाम को गुडिचा मंदिर-जनकपुरी, सिरहासार भवन में 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के द्वारा भगवान जगन्नाथ स्वामी को 56 भोग का अर्पण किया गया, 56 भोग का अर्पण में 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के सदस्य ओंकार पांडे का परिवार का योगदान लगातार चला रहा है। 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों पंडित उदयनाथ पानीग्राही एवं शुभांशु पाढ़ी के माध्यम से पूरे विधि-विधान के साथ 56 भोग के अर्पण का पूजा विधान संपन्न करवाया गया।

360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष ईश्वर खांबारी ने बताया कि बस्तर गाेंचा महापर्व में रियासत कालीन परंपरानुसार श्रीजगन्नाथ स्वामी को लगाए जाने वाले 56 भोग का बड़ा माहात्म्य है। भगवान श्रीजगन्नाथ भगवान श्रीकृष्ण के अवतार माने जाते है। भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत धारण करने की लीला के साथ 56 भोग को जोड़कर देखा जाता है। भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी को 56 भोग का अर्पण में 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ को अर्पण किये जाने वाले 56 भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर संपन्न होता है।

बस्तर गाेंचा समिति के अध्यक्ष विवेक पांडे ने बताया कि शास्त्रसम्मत एवं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 56 भोग विधिवत सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण के श्रीगोवर्धन पर्वत धारण करने के सात दिनों बाद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को भगवान श्रीकृष्ण को अर्पण किया गया था। लेकिन श्रद्धानुरूप भगवान श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण को 56 भोग का अर्पण किसी भी शुभ अवसर पर किया जा सकता है। हिन्‍दू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण को एक दिन में आठ पहर अर्थात 08 बार भोग का अर्पण किया जाता है। सात दिन और आठ प्रहर के हिसाब से 56 प्रकार का भोग लगाने की परंपरा सर्वविदित है।

उन्हाेंने बताया कि 56 भोग में 56 प्रकार के व्यंजन का समावेश होता है, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहली बार जिस 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग भगवान श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण को अर्पण किया गया था, उसे आधार मानकर उन्ही 56 व्यंजनों को छप्पन भोग में शामिल कर भगवान को अर्पण किया जाता है, जो रसगुल्ला से प्रारंभ होकर इलाइची पर जाकर 56 व्यंजन सम्पूर्णता पाता है, वह निम्नानुसार है, 1-रसगुल्ला, 2-चन्द्रकला, 3-रबड़ी, 4-शूली, 5-दधी, 6-भात, 7-दाल, 8-चटनी, 9-कढ़ी, 10-साग-कढ़ी, 11-मठरी, 12-बड़ा, 13-कोणिका, 14- पूरी, 15-खजरा, 16-अवलेह, 17-वाटी, 18-सिखरिणी, 19-मुरब्बा, 20-मधुर, 21-कषाय, 22-तिक्त, 23-कटु पदार्थ, 24-अम्ल,खट्टा पदार्थ , 25-शक्करपारा, 26-घेवर, 27-चिला, 28-मालपुआ, 29-जलेबी, 30-मेसूब, 31-पापड़, 32-सीरा, 33-मोहनथाल, 34-लौंगपूरी, 35-खुरमा, 36-गेहूं दलिया, 37-पारिखा, 38-सौंफ़लघा, 39-लड़्ड़ू, 40-दुधीरुप, 41-खीर, 42-घी, 43-मक्खन, 44-मलाई, 45-शाक, 46-शहद, 47-मोहनभोग, 48-अचार, 49-सूबत, 50-मंड़का, 51-फल, 52-लस्सी, 53-मठ्ठा, 54-पान, 55-सुपारी, 56-इलायची।

हिन्दुस्थान समाचार

हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे / चन्द्र नारायण शुक्ल

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