राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव : ''कठकरेज'' ने दिखाई रिश्तों के बिखराव की कहानी

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राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव : ''कठकरेज'' ने दिखाई रिश्तों के बिखराव की कहानी


राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव : ''कठकरेज'' ने दिखाई रिश्तों के बिखराव की कहानी


राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव : ''कठकरेज'' ने दिखाई रिश्तों के बिखराव की कहानी


राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव : ''कठकरेज'' ने दिखाई रिश्तों के बिखराव की कहानी


बेगूसराय, 17 दिसम्बर (हि.स.)। आशिर्वाद राष्ट्रीय महोत्सव के प्रथम दिन रंगकर्मियों ने श्रवण कुमार गोस्वामी लिखित और अमित रौशन निर्देशित नाटक ''कठकरेज'' में वर्तमान आर्थिक युग में रिश्तों के बिखराव को दिखाया। बताया कि आज के समय में मां-बाप, सास-बहू, बेटे का रिश्ता प्रभावित हो रहा है। इस कहानी में गंगा बाबू अपनी पत्नी कांति तथा दो बेटे अजय और विजय के साथ मध्यम वर्गीय जीवन जी रहे होते हैं।

गंगा बाबू एक सड़क किनारे खोमचे के पास जूठा खाकर जीवन यापन करने वाले लड़के रंजन को घर ले आते हैं। समय के साथ तीनों बड़े होते हैं, गंगा बाबू का बड़ा बेटा अजय पढ़ने में काफी तेज था जो आईआईटी कर सीधा अमेरिका चला गया, फिर कभी नहीं आया। वहीं शादी कर बस गया, उसने वहां से अपने माता-पिता को बेटी का फोटो भेजा, लेकिन आया नहीं। दूसरा बेटा विजय का पढ़ाई में मन नहीं लगता था, वह क्रिकेट में आगे बढ़ गया।

उसकी प्रतिभा को देखकर एक अमीर लड़की ने प्रेम विवाह कर घर जमाई बना लिया, जिसके कारण वह भी घर नहीं आता है। गंगा बाबू और कांति के बुढ़ापे का सहारा रज्जन बनता है, जिसे उन्होंने अपने बेटे की तरह पाला पोसा है। रज्जन की दिलचस्पी दुकान में जायदा है वो गंगा बाबू को बहुत साथ देता है, एकबार कांति बीमार हो जाती है तो गंगा बाबू बड़े बेटे को फोन करते हैं तो आता नहीं है।

लेकिन पांच सौ डॉलर भेज देता जो गंगा बाबू गुस्से में वापस कर देते हैं। तब हारकर गंगा बाबू छोटे बेटे विजय को फोन करते हैं तो फोन विजय की पत्नी उठाती है और कहती है की विजय से बात नहीं हो सकती है। निराश होकर कांति का ऑपरेशन कराते हैं, उसको खून की जरूरत होती है तो रज्जन अपना खून देता है। उसके बाद गंगा बाबू मान लेते हैं कि उनका एक ही बेटा है रज्जन, कांति भी उसे बहुत मानती है। गंगा बाबू और कांति को रज्जन के लिए समाज के लोगों का ताना सुनना पड़ता है।

लेकिन दोनों पति-पत्नी को कोई फर्क नहीं परता है, गंगा बाबू रज्जन की शादी अपने ही जाति बिरादरी की लड़की से कराते हैं। लेकिन स्थिति कुछ ऐसी हो जाती है कि रज्जन अपनी पत्नी के साथ बिना गंगा बाबू से बात किए घर छोड़ कर चला जाता है। उसके जाने के बाद गंगा बाबू और कांति टूट जाते हैं। कुछ दिन बाद वह लौट कर आता है तो पता चला कि यह सब त्रिया चरित्र का प्रभाव था, रज्जन बिलकुल नहीं बदला है। कुल मिलाकर यह कहानी हर परिवार की है, हर घर प्रभावित हो रहा है।

वर्तमान दौर के हर व्यक्ति को प्रभावित करते नाटक में गंगा बाबू की भूमिका मोहित मोहन, कांति की भूमिका कविता कुमारी, रज्जन की भूमिका कुणाल भारती, बहु की भूमिका कृष्णा कुमारी, सूत्रधार की भूमिका सचिन कुमार एवं अरुण कुमार, ग्रामीण की भूमिका में बिट्टू कुमार, अरुण एवं सचिन कुमार ने निभाया। प्रकाश संयोजन सचिन कुमार एवं संगीत संयोजन सूरज कुमार ने किया। कठकरेज का निर्देशन और परिकल्पना अमित रौशन ने किया।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा

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