महाभारतकालीन विराट राजा के दरबार के अवशेष को संरक्षण में जुटी पुरातत्व विभाग
अररिया,18 दिसम्बर(हि.स.)।
जोगबनी सीमा से सटे विराटनगर के भेरियारी में महाभारत कालीन ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व वाली विराट राजा के दरबार वाले क्षेत्र के संरक्षण में नेपाल पुरातात्विक विभाग की टीम जुट गई है। दो हजार वर्ष पुराना भवन के संरचना का संरक्षण कार्य की शुरुआत की गई है। पुरातत्व विभाग की टीम के द्वारा ऐतिहासिक भेडियारी टीला के उत्खनन से प्राप्त प्रथम ईसा के पहले और दूसरे शताब्दी के संरचना को नुकसान न हो,इसके लिए संरक्षण का कार्य किए जा रहे हैं।
प्राप्त जानकारी की अनुसार,इस स्थल पर पुरातत्व विभाग के द्वारा 1970-71 में पहली बार उत्खनन किया गया था। जिसके बाद इसमें प्राचीन दीवाल तथा कक्ष के अवशेष मिले थे।जिसके बाद इस इलाके मे किसी भी प्रकार के खनन पर रोक लगा दी गयी थी। बता दें कि सीमा से कुछ मीटर की दूरी पर रहे इस स्थान के अगल बगल भारतीय प्रभाग में भी खेती के दौरान भी कई पुराने अवशेष मिले हैं। हालंकि दरबार क्षेत्र के उत्खनन किए गए इलाके को वर्षा,धूप और मानवीय गतिविधि के कारण जीर्ण बन रहे संरचना को सुरक्षित रखने के लिए संरक्षण का कार्य किया जा रहा है ।
संरक्षण कार्य के अंतर्गत पुराने संरचना के ऊपर जियो टेक्सटाइल बिछा कर नया ईंट से ढकने के साथ पानी अंदर न प्रवेश करें, इसके लिए वाटर टाइट बनाने का काम किया जा रहा है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस स्थान को महाभारतकालीन विराट राजा का दरबार माना जाता है।लेकिन पुरातात्विक अध्ययन में इसको मंदिर के संरचना होने की संभवाना के तरफ संकेत किया जा रहा है। संरक्षण कार्य में रहे लुम्बिनी विकास कोष के वरिष्ठ पुरातत्व अधिकारी और यस साइट में कार्य कर रहे पुरातत्वविद् हिमाल कुमार उप्रेती का कहना है कि 1970 में वरिष्ठ पुरातत्वविद् तारानन्द मिश्र के द्वारा किए गए उत्खननन प्रतिवेदन के अनुसार,यहां मंदिर का गर्भगृह होने व इसका निर्माण दो चरण मे होने का उल्लेख किया गया है।
पहले चरण मे शुंग काल (दूसरे शताब्दी ई.पू.) व दूसरा चरण में कुषाण काल (पहला शताब्दी ई.)में इस संरचना का निर्माण किया गया था।इनके अनुसार अभी दिख रहे अधिकांश ईंट कुषाणकालीन है । 1970 के उत्खननन और जनवरी 2025 मे किए गए जियोफिजिकल सर्वे मे इस क्षेत्र मे 46 फिट लम्बा 45 फिट चौड़ा बड़े संरचना का जग दिखाया गया है ।
अभी किए जा रहे संरक्षण मे जमीन के बाहर दिख रहे दीवाल को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पुराने ईट के ऊपर नये ईट को बिना किसी बदलाव के लगाया जा रहा है।इसके लिए अंदर जो ईंट उसी प्रकार का ईट निर्माण कर निचे जियो टेक्सटाइल को बिछा कर ऊपर से नया ईट पुरानी विधि चुना सुर्ख के लेप से जाम किया जा रहा है।
पुरातत्वविद् श्री उप्रेती ने कहा की पुराना संरचना अगर टेढ़ा और टुटा है तो भी उसको भी सीधा नहीं किया जाएगा।जो जिस अवस्था मे है, उसी अवस्था में संरक्षण किया जा रहा है।पुराने व नये संरचना को अलग करने के लिए बीच मे जियो टेक्सटाइल रखा गया है,ताकि फिर कभी अध्ययन के समय आसानी से नये पुराने भाग का पता लगाया जा सके। वही इसमे प्रयोग होने वाले ईट भी विशेष प्रकार का है ।
पुरातत्व विभाग के कर्मचारी हरिप्रसाद भुसाल के अनुसार,यहां प्रयोग किए गए ईट विशेष रूप से बनया गया है। आठ कारीगर के मदद से 15 के अंदर कार्य पूर्ण होने का अनुमान लगाया गया है।
हिन्दुस्थान समाचार / राहुल कुमार ठाकुर

