मशान जलाशय परियोजना निर्माण पूरी हो जाय तो पश्चिम चंपारण दूसरा पंजाब साबित होगा

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मशान जलाशय परियोजना निर्माण पूरी हो जाय तो पश्चिम चंपारण दूसरा पंजाब साबित होगा


पश्चिम चंपारण, 23 दिसंबर (हि.स.)।

महात्मा गांधी की कर्म भूमि चम्पारण और आदि कवि वाल्मीकि की तपोभूमि वाल्मीकि नगर विधानसभा क्षेत्र में कुटीर उद्योग, कृषि,शिक्षा, स्वास्थ आजादी के 78 वर्ष गुज़र जाने के बाद भी पिछड़ा हुआ है। हालाकि नीतीश काल में सड़क, पुल,पुलिया बना है। अस्पताल बना है ,विद्यालय उत्क्रमित भी हुआ है, परंतु अस्पताल और विद्यालयों में डॉक्टर, टीचर का आभाव है, जिस कारण सरकार के तरफ दोनों टकटकी लगाकर देख रहें हैं। उच्चस्तरीय शिक्षा में एक भी सरकारी डिग्री कॉलेज नहीं है, जिसमें लड़कियां पढ़ सकें,हालाकि नीतीश कुमार पिछले दिनों धनहा में डिग्री कॉलेज बनाने की घोषणा किये हुए है, जबकि वाल्मीकि की तपों भूमि ज्ञान और शिक्षा के लिए ही जाना जाता है, जहां लव और कुश ने शिक्षा प्राप्त किया था।

वाल्मीकि नगर विधान सभा के विधायक सुरेन्द्र कुशवाहा बताते हैं कि मेरे विधानसभा में विकास अब भी कोसों दूर है, गिनाने के लिए ढेर सारा विकाश है, पर धरातल पर विकास अब भी कोसों दूर है। गंडक के दियारा में पांच हजार से ज्यादा नील गाय,जंगली साढ़ों का बसेरा हो गया है,इस कारण प्रत्येक वर्ष हजारों एकड़ में किसानों की लगी फसल बर्बाद हो जाती है। वाल्मीकि नगर पर्यटन मामलें में विश्व क्षितिज पर आज स्थापित है। सेमरा में नीतीश कुमार के सौजन्य से रैफरल अस्पताल बना है, पर उसमें डॉक्टर नहीं है,नतीजा यह है कि लोगों को गोरखपुर, बनारस इलाज के लिए जाना पड़ता है। आगे बताते है कि कुटीर उद्योग नहीं होने से यहां अपराध फला- फूला,किंतु अब शांति है,यहां सिलाई, बुनाई, कारघा, रेशम के क्षेत्र में सरकार के तरफ से प्रोत्साहन राशि दिया जाय,तो लोगों को जीविका मिल सकती है, गरीबी दूर होगी।

बगहा-2 प्रखंड कार्यालय के सामने सिलाई-बुनाई के लिए बनाये गये सरकारी भवन केंद्र को विगत प्रशासन ने उसमें अपने चाय पानी के लिए होटल खोलवा रखा है, जो क्षेत्र के लिए दुर्भाग्य है।उन्होंने बताया कि मसान डैम योजना पूरा हो जाय, तो कृषि के क्षेत्र में क्रांति हो जायेगी, मजदूर का पलायन रुक जायेगा। रामनगर क्षेत्र से लेकर सेमरा, हरनाटांड, गनौली तक हज़ारों हजार बंजर असिंचित भूमि सिंचित हो जायेगी।

उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश हुकूमत 19 अगस्त 1851 ईस्वी में स्टोनी नामक कार्यपालक अभियंता को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसने अपने सर्वेक्षण द्वारा यह पाया कि 350 वर्ग किलोमीटर में मशान नदी पर 5220 मीटर लंबा एवं 85 फीट ऊंचा बांध का निर्माण करके बरसात का पानी रोका जाय और दोनों तरफ नहर का निर्माण करके सिंचाई कार्य किया जा सकता है। इससे बाढ़ पर काबू पाया जा सकता है और पैदावार भी बढ़ाई जा सकती है। इस कार्य के लिए लगभग पांच हज़ार की आबादी वाले चार गांवों को कहीं दूसरी जगह बसाना था। परियोजना को गति देने के लिए नौ किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण भी किया जाना था। 12 दिसंबर, 1853 को उसने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी ।

सरकार ने निर्माण की दिशा में क़दम आगे बढ़ाया, लेकिन कुछ दिनों तक काम करने के बाद सिंचाई विभाग ने अपनी अकर्मण्यता और निष्क्रियता का परिचय देते हुए सरकार को यह बता दिया कि काम महंगा है और ऊंचा बांध बनाने के लिए मिट्टी उपयुक्त नहीं है। 5 जून, 1876 को सिंचाई विभाग ने इससे अपना पल्ला झाड़ लिया, लेकिन सरकार ने हिम्मत नहीं हारी। उसने 1947 में एक बार फिर सीतारमण नामक अधीक्षण अभियंता से सर्वेक्षण कराया।

उन्होंने भी परियोजना को उपयुक्त बताया, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के कारण इसका निर्माण कार्य अधर में लटक गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार का ध्यान इस परियोजना पर गया। 1970 में सहायक अभियंता ललित मोहन प्रसाद को पुनः सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया। सर्वेक्षण में इस परियोजना पर 353 लाख रुपये खर्च होने की बात कही गई। फिर भी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया, उसके बाद सरकार ने 1977 में कार्यपालक अभियंता चंद्रमा सिंह से सर्वेक्षण कराया और निर्माण के लिए मास्टरप्लान तैयार कराना शुरू किया, जिसे 20 जनवरी, 1978 को अंतिम रूप दिया गया। 11 जुलाई, 1980 को केंद्रीय जल आयोग के एम एन वेंकटेशन द्वारा योजना स्थल का निरीक्षण किया गया। अंततः 28 नवंबर, 1980 को केंद्रीय जल आयोग एवं योजना आयोग की सलाहकार समिति ने 3473 लाख रुपये देकर योजना को अपनी स्वीकृति प्रदान की। 27 जुलाई, 1981 को बिहार सिंचाई विभाग ने प्रशासनिक और 27 अक्टूबर, 1981 को मुख्य अभियंता जी. पी. शाही द्वारा योजना को प्रावैधानिक स्वीकृति दी गई। एक फरवरी, 1982 को निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। कुछ महीनों तक तो निर्माण कार्य ठीकठाक चला, लेकिन उसके बाद पैसों के अभाव में परियोजना अधर में लटक गई। इस दौरान राज्य और केंद्र में सरकारें आती-जाती रहीं, लेकिन इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

विधायक सुरेन्द्र प्रसाद कुशवाहा का कहना है कि मशान जलाशय परियोजना का निर्माण कार्य पूरा हो जाए तो उत्तर बिहार कृषि के मामले में दूसरा पंजाब साबित होगा। विदित हो कि यह योजना बिहार की पहली योजना थी, यहां की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। मशान दियारा क्षेत्र में दस हज़ार एकड़ से ज़्यादा भूमि मरु स्थिति में है। परियोजना से यहां की भूमि को जान मिल जायेगी।

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हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द नाथ तिवारी

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