पंचतत्व में विलीन हुए कवि हीरा प्रसाद
भागलपुर, 17 मई (हि.स.)। जिले के सुल्तानगंज के मिट्टी में जन्में अंगिका भाषा को पहचान दिलाने वाले कवि हीरा प्रसाद शुक्रवार को पंचतत्व में विलीन हो गए।
अंगिका तथा हिन्दी साहित्य में हीरा प्रसाद का अमूल्य योगदान रहा है। अंगिका भाषा को समर्पित हीरा बाबू का जन्म 6 सितंबर 1950 को सुलतानगंज के कटहरा में हुआ था। लेखनी से अंगिका में कई खंड काव्य, महाकाव्य की रचना की। इनका काव्य खंड पुस्तक उत्तंग हमरो अंग और अंगिका महाकाव्य तिलकामांझी टीएमबीयू में एम ए के पाठ्यक्रम में छात्र पढ़ रहे हैं। वह अखील भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच के राष्ट्रीय महामंत्री थे।
अंगिका में गजल संग्रह, हिन्दी संस्मरण, हिन्दी काव्य संकलन, हिन्दी एकांकी, लोक गाथा पर उपन्यास, कुंडलियों व दोहे लिखे कई सम्मान व पुरस्कार भी मिले। सुलतानगंज के मुक्ति धाम में आज उनका अंतिम संस्कार किया गया। शोक व्यक्त करने वालों में समस्त कवि गण तथा ग्राम वासी मौजूद थे।
हिन्दुस्थान समाचार/बिजय/चंदा
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