वाल्मीकि नगर के दरुआबारी गांव पहुंचे 13 देश के बौद्ध
प.चंपारण(बगहा), 21 दिसंबर(हि.स.)।
बिहार में पश्चिम चंपारण जिले के वाल्मीकि नगर के दरुआबारी गांव के समीप वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल में बौद्ध इतिहास के महत्वपूर्ण साक्ष्य आज भी जमींदोज हैं।
चंपारण गजेटियर के अनुसार, चीनी यात्री ह्वेनसांग सातवीं सदी में यहां आया था। उसने यात्रा वृतांत में दरुआबारी को रामग्राम बताया है। कहा जाता है कि यहां बड़ा बौद्ध स्तूप था। जंगल के बीच करीब पांच दर्जन पुराने कुएं इसकी गवाही भी देते हैं। इसकी पुष्टि अवशेषों से भी होती है।
बगहा निवासी व बेंगलुरु के अमृता विश्व विद्यापीठम में दर्शनशास्त्र व अध्यात्म के प्राध्यापक डॉ. प्रांशु समदर्शी ने शोध के दौरान मई 2012 में इस क्षेत्र का जायजा लिया था। उनका कहना है कि दरुआबारी में मिलने वाले पुरातात्विक अवशेष बौद्ध काल से जुड़े लगते हैं। जिससे पता चलता है कि यह स्थान कभी बौद्ध भिक्षुओं और उनके जीवन का केंद्र रहा होगा, और भगवान बुद्ध का भी यहाँ आगमन हुआ होगा। जो भिक्षुओं के जीवन और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार की ओर इशारा करता है।
भगवान बुद्ध भी इस क्षेत्र में भिक्षुओं के साथ आए थे, जिससे यह स्थान ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हो गया है। बुद्ध की मौसी और पालक माता महा प्रजापति गौतमी
ने अपने बाल कटवाए, पीले वस्त्र धारण किए और कई शाक्य स्त्रियों के साथ इसी रास्ते कपिलवस्तु से वैशाली तक 150 मील की पैदल यात्रा की थी। आज तेरह देश के बौद्ध भिक्षुओं ने इस जगह बैठकर विश्वशांति की कामना के साथ विशेष पूजन पाठ किया। 13 देशों से आए बौद्ध भिक्षुओं की टीम में सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं की थी। उनके आगमन पर जिला प्रशासन के अधिकारियों एवं ग्रामीणों द्वारा स्वागत गान गाकर फूल मलाएं पहना, भव्य स्वागत किया गया।
जिला प्रशासन के तरफ से मौके पर प्रखंड विकास पदाधिकारी बिडू कुमार राम, थाना अध्यक्ष मुकेश चंद्र कुमर, कृषि विभाग के समन्वयक अमरीश कुमार, सहित सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे।
13 देश से आए बौद्ध भिक्षुओं का नेतृत्व कर रहे दीपक आनंद ने बताया कि भगवान बुद्ध भी इसी रास्ते से गुजरे थे ,और गांव के समीप जंगल में टेढ़ी सागर तालाब में स्नान कर, यहां विश्राम किए थे। उस काल के कई ऐसे अवशेष हैं, जो खोज करने के बाद प्राप्त हुए थे। नेपाल के कपिलवस्तु से चलकर यह टीम भगवान बुद्ध के जन्मस्थली लुंबिनी से होते हुए यहां पहुंची है। जो वैशाली तक जाएगी। जिन-जिन जगहों पर बौद्ध कालीन अवशेष पड़े हैं, उनको इस रूप में विकसित करने की पहल बुद्धिस्टों के द्वारा की जाएगी। इस स्थल के चारों तरफ घने जंगल लगाने की प्रक्रिया शुरू कर यहां की सुंदरता को और बढ़ाया जाएगा।
52 गढ़ी, 53 बाजार एवं 56 कुओं का इतिहास संजोया है दरूआबारी
हजारों वर्ष पूर्व का इतिहास वाल्मीकिनगर थाना क्षेत्र अंतर्गत आने वाला दरूआबारी गांव संजोकर रखा है। पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि रमेश कुमार महतो ने बताया कि, बुद्ध काल में 52 राजाओं का गढ़, 53 बाजार एवं 56 कुओं के साथ गांव से सटे वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल में टेढ़ी सागर के नाम से तालाब हुआ करता था, जिसका अवशेष आज भी है। पत्थर के बने मगरमच्छ की प्रतिमा इसी जंगल में पड़ी हुई थी जिसको आज भी संजो कर रखा गया है। अगर खोदाई हो तो लगभग 6 फीट नीचे उस मगरमच्छ की प्रतिमूर्ति मिल जाएगा। जहां-जहां कुआं था, उसका अवशेष आज भी देखने को मिलता है।
कुषाण काल के ईट मिले हैं बावन गढ़ी मंदिर में
दरूआबारी गांव से सटे 52 गढ़ी मंदिर परिसर में कुषाण काल के ईंट का अवशेष मिले है जो आज भी मौजूद है । 52 गढ़ी स्थान भी बुद्ध काल के स्तूप के रूप में माना जाता है। बौद्ध भिक्षुओं के अग्रगणी माता धम्मा एवं दीन,वंदना ने बताया कि बुद्ध कल के कुछ इतिहास और किताबें पढ़ने के बाद इस जगह के बारे में हमें जानकारी मिली है। जहां-जहां भगवान ने अपना कदम रखा है वहां कुछ ना कुछ अवशेष हैं। वहां हम पहले प्रार्थना सभा कर रहे हैं। बाद में उसके विकास और जीर्णोद्धार के बारे में सरकार से बात की जाएगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द नाथ तिवारी

