शिव गुरू महोत्सव में उमड़े श्रद्धालु

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शिव गुरू महोत्सव में उमड़े श्रद्धालु


शिव गुरू महोत्सव में उमड़े श्रद्धालु


शिव गुरू महोत्सव में उमड़े श्रद्धालु


पूर्वी चंपारण,12 दिसबंर(हि.स.)। जिले के चकिया स्थित चीनी मिल मैदान में शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द फाउंडेशन के तत्वाधान में मंगलवार को आयोजित शिव गुरु महोत्सव में बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटे। कार्यक्रम के आयोजन का मुख्य उद्देश्य महेश्वर शिव के गुरू स्वरूप से एक-एक व्यक्ति का शिष्य के रूप में जुड़ाव कराने को लेकर किया गया।आयोजन में शामिल होने के लिए बिहार, झारखंड, यूपी, बंगाल और पड़ोसी देश नेपाल से शिव शिष्यों का जनसैलाब उमड़ पड़ा।

महोत्सव का शुभारंभ हर भोला जागरण धुन के साथ हुआ, शिव शिष्यों ने भी भगवान शिव के गुरु स्वरूप की चर्चा की, वही कई गुरुभाइयों ने शिव चर्चा व भजन सुनाकर शिव शिष्यों को मंत्र मुग्ध कर दिया। शिव शिष्य साहब हरीन्द्रानन्द जी के संदेश को लेकर आयी कार्यक्रम की मुख्य वक्ता दीदी बरखा आनन्द ने कहा कि शिव केवल नाम के नहीं अपितु काम के गुरू हैं। शिव के औढरदानी स्वरूप से धन, धान्य, संतान, सम्पदा आदि प्राप्त करने का व्यापक प्रचलन है तो उनके गुरू स्वरूप से ज्ञान भी क्यों नहीं प्राप्त किया जाय। किसी संपत्ति या संपदा का उपयोग ज्ञान के अभाव में घातक हो सकता है।

दीदी बरखा आनन्द ने कहा कि शिव जगतगुरू हैं अतएव जगत का एक-एक व्यक्ति चाहे वह किसी धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग का हो शिव को अपना गुरू बना सकता है। शिव का शिष्य होने के लिए किसी पारंपरिक औपचारिकता अथवा दीक्षा की आवश्यकता नहीं है। केवल यह विचार कि शिव मेरे गुरु हैं,शिव की शिष्यता की स्वमेव शुरूआत करता है। इसी विचार का स्थायी होना हमको आपको शिव का शिष्य बनाता है।

उन्होंने अपने वाणी में कहा कि शिव शिष्य साहब हरीन्द्रानन्द ने सन् 1974 में शिव को अपना गुरु माना। शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द और उनकी धर्मपत्नी दीदी नीलम आनंद के द्वारा जाति, धर्म, लिंग, वर्ण, सम्प्रदाय आदि से परे मानव मात्र को भगवान शिव के गुरु स्वरूप से जुड़ने का आह्वान किया गया। हमारे साधुओं, शास्त्रों और मनीषियों द्वारा महेश्वर शिव को आदिगुरू, परमगुरू आदि विभिन्न उपाधियों से विभूषित किया गया है। शिव का शिष्य होने में मात्र तीन सूत्र ही सहायक हैं। पहला सूत्र अपने गुरू शिव से मन ही मन यह कहें कि “हे शिव, आप मेरे गुरू हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिए , दूसरा सूत्र सबको सुनाना और समझाना है कि शिव गुरू हैं ताकि दूसरे लोग भी शिव को अपना गुरू बनायें, तीसरा सूत्र अपने गुरू शिव को मन ही मन प्रणाम करना है। इच्छा हो तो “नमः शिवाय’ मंत्र से प्रणाम किया जा सकता है। इन तीन सूत्रों के अलावा किसी भी अंधविश्वास या आडम्बर का कोई स्थान बिल्कुल नहीं है।

हिन्दुस्थान समाचार/आनंद प्रकाश

/चंदा

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