डॉ भीमराव अंबेडकर ने सबको समान रूप से दिलाया था पानी पीने का अधिकार

WhatsApp Channel Join Now
डॉ भीमराव अंबेडकर ने सबको समान रूप से दिलाया था पानी पीने का अधिकार






बेतिया, 14 अप्रैल (हि.स)। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत के संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर की 132वीं जन्मदिवस पर शुक्रवार को भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया ,जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ,बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता डॉ भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 132 वर्ष पूर्व 14 अप्रैल 1891 ई को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जन्म हुआ था। उनका सारा जीवन सामाजिक उत्थान के लिए रहा। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य समाज के उपेक्षित वर्ग अल्पसंख्यकों एवं दलितों के मानव अधिकारों के लिए जारूकता पैदा करना था। भारत रत्न बाबा साहब डा भीमराव अंबेडकर ने सत्याग्रह के माध्यम से निश्चय किया कि समाज का उपेक्षित वर्ग अल्पसंख्यक एवं अछूत समाज समान रूप से पानी पीकर रहेगा।

दुनिया का इतिहास भेदभाव-जुल्म एवं इसके विरुद्ध संघर्ष का इतिहास है. अधिकांशतः ये भेदभाव या जुल्म किसी शासक या सरकारों द्वारा जनता पर किए गए हैं । जनता ने इस भेदभाव, जुल्म के विरुद्ध संघर्ष भी किया है। लेकिन दुनिया में कई हिस्से ऐसे हैं, जहां सिर्फ सरकारों एवं शासकों ने नहीं, पूरे के पूरे समुदाय ने दूसरे समुदाय पर अत्याचार किए हैं। भारत में जातिवादी व्यवस्था द्वारा दलितों-पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों को संस्थागत रूप से संसाधनों से वंचित किया गया. एक वर्ग को अछूत एवं अल्पसंख्यक घोषित किया गया, उन पर जुल्म ढाए गए।

मध्यकालीन भारत एवं ब्रिटिश राज में भारतीय समाज सुधारकों के प्रयासों से अछूतों को शिक्षा एवं सम्पत्ति का अधिकार मिलने से उनके अंदर अधिकारों के लिए चेतना पैदा हुई , जिससे वे अपने मानवीय अधिकारों की मांग करने लगे. इसी मांग का परिणाम था सन् 1927 में महाड़ का आंदोलन। यह आंदोलन ऐसा है जिसे भारतीय इतिहास में लम्बे समय तक याद रखा रखा जायेगा।यह आंदोलन इसलिए शुरू हुआ क्योंकि अछूतों एवं समाज के उपेक्षित वर्ग को सार्वजनिक स्थान से पानी पीने की मनाही थी।

बाबा साहेब ने अपने समाज को बताया कि सार्वजनिक स्थान से पानी पीने का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है।1923 में बम्बई विधान परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया कि सरकार के द्वारा बनाये गए एवं पोषित तालाबों से अछूतों को भी पानी पीने की इजाजत है। 1924 में महाड़ नगर परिषद ने इसे लागू करने के लिए एक प्रस्ताव भी पास किया। फिर भी अछूतों को स्थानीय सवर्ण के विरोध के कारण पानी पीने की इजाजत नहीं थी। बाबा साहेब का उद्देश्य दलितों में उनके मानव अधिकारों के लिए जारूकता पैदा करना था. उन्होंने यह निश्चय किया कि हमारा अछूत समाज इस तालाब से पानी पीकर रहेगा।

इसके लिए दो महीने पहले एक सम्मेलन बुलाया गया. लोगों में जागृति पैदा करने के लिए सत्याग्रह आरंभ की गई ।लोगों को गांव-गांव भेजा गया कि 20 मार्च, 1927 को हम इस तालाब से पानी पीयेंगे. लोगो को इकठ्ठा किया गया. एक पंडाल लगाया गया. जिसमें अच्छी-खासी भीड़ इकठ्ठी हुई।काफी दूर-दूर से लोग आये। लगभग 10,000 से अधिक लोगों ने सबके लिए जल सत्याग्रह में हिस्सा लिया। उस पंडाल के लिए जमीन एक मुसलमान परिवार ने दी थी. सवर्ण लोगों ने मुसलमानों पर दबाब भी डाला कि ऐसे सत्याग्रह के लिए जमीन न दें, फिर भी उन्होंने अपनी जमीन दी।वक्ताओं ने कहा कि बाबा साहब भीमराव के आदर्श नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन है।

हिन्दुस्थान समाचार / अमानुल हक

Share this story