नवनियुक्त शिक्षकों के पदस्थापन पर प्रश्नचिह्न, नगर क्षेत्र के विद्यालय के बच्चों का क्या कसूर
बेगूसराय, 15 नवम्बर (हि.स.)। बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) के शिक्षक नियुक्ति के बाद पदस्थापन में बड़ी गड़बड़ी सामने आ गई है। नगर क्षेत्र में कम शिक्षक वाले विद्यालयों में एक भी शिक्षकों को नहीं भेजा गया। वहीं, कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित पहले से अधिक शिक्षक वाले विद्यालयों में और शिक्षकों को भेज दिया गया है।
कहा जा रहा है कि नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी करते समय यह कहां तय हुआ था कि पदस्थापन केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही होंगे। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के विभाजन को लेकर कौन सी नीति अपनाई गई। आठ प्रतिशत शहरी आवास भत्ता वाले क्षेत्र ग्रामीण कैसे हुए और एक हजार रुपये प्रतिमाह शहरी यात्रा भत्ता से वंचित बीहट, बलिया, बखरी आदि अर्द्ध शहरी-कस्बाई क्षेत्र शहरी कैसे हुए।
प्राथमिक शिक्षक साझा मंच के समन्वय समिति सदस्य रंजन कुमार ने कहा है कि बिहार लोक सेवा आयोग की अनुशंसा पर बिहार सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा संचालित नियुक्ति की प्रक्रिया में आधिकारिक तौर से मांगे जाने पर भी नगर निकाय क्षेत्र के विद्यालयों को नवनियुक्त अध्यापकों के पदस्थापन से वंचित रखना नगर निकाय क्षेत्राधीन सैकड़ों विद्यालयों में पढ़नेवाले लाखों बच्चों के हितों की अनदेखी है।
यह शिक्षा अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के प्रतिकूल है तथा उच्चस्तरीय कार्यपालक शक्तियों का अन्यायपूर्ण दुरुपयोग है। बेगूसराय में प्रथम से पंचम वर्ग के लिए विभागीय कार्यालय द्वारा अधियाचित 19 सौ रिक्तियों के एवज में विभाग के से स्वीकृत 2478 रिक्तियां, बीपीएससी द्वारा अनुशंसा के लिए 2963 के आंकड़े तक पहुंच गई। पदस्थापन के दौरान 3077 नवनियुक्त अध्यापकों के विद्यालय आवंटन को लेकर जारी आधिकारिक सूची में शहरी क्षेत्र के करीब 199 प्रारंभिक विद्यालयों में एक भी अध्यापक का पदस्थापन नहीं किया गया।
इस पूरे प्रकरण में कोई नीतिगत तथ्य और निर्णय शुरू से ही कभी भी स्पष्ट रूप में नहीं दिखा। नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने से पहले आधिकारिक तौर पर यह सुनिश्चित करना तय हुआ था कि सभी प्राथमिक विद्यालयों में प्रथम से पंचम वर्ग कम से कम छह शिक्षक तथा मध्य विद्यालयों में कम से कम छह तथा अधिकतम छात्र संख्या के अपेक्षित अनुपात एक-40 के अनुसार यथेष्ट शिक्षक की तैनाती को लेकर सभी आवश्यक उपाय किए जाएंगे। पूरे जिले से कई बार स्कूलों में बच्चों की नामांकित और औसत उपस्थिति तथा शिक्षकों की वर्तमान तैनाती से संबंधित आंकड़े प्रधानाध्यापकों से मंगवाए गए।
इस पूरी कवायद में प्रधानाध्यापकों से उनके विद्यालयों के लिए कभी भी स्पष्ट रूप से शिक्षकों की आवश्यकता के संबंध में कोई भी प्रतिवेदन नहीं मांगा गया। शहरी और ग्रामीण विद्यालय में शिक्षक पदस्थापन के लिए प्राथमिकता के आधार पर भेदभाव करने की भी कोई नीति नहीं निर्धारित की गई। विद्यालय आवंटन के समय अचानक मौखिक निर्देश पर नवनियुक्त अध्यापकों की नियुक्ति नियमावली में निर्धारित प्रक्रिया से भिन्न केंद्रीकृत प्रक्रिया के तहत तात्कालिक रूप से निर्गत आदेश के तहत केवल गांव में तैनाती के लिए अपनाई गई प्रक्रिया से नगर निकाय क्षेत्र के कई विद्यालय प्रधान हतप्रभ हैं।
दूसरी ओर अपर्याप्त वर्ग कक्ष और नगण्य बच्चों वाले अधिकांश शहरी एवं ग्रामीण स्कूलों में आवश्यकता से अधिक शिक्षकों की तैनाती इस प्रक्रिया की प्रासंगिकता पर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। निकट भविष्य में अवकाश प्राप्त करने वाले, गंभीर रूप से बीमार और अन्य कई सामाजिक और आर्थिक कारणों से शिक्षण कार्य में शिथिल पर चुके शिक्षकों से भरे शहरी विद्यालयों में नवनियुक्त विद्यालय अध्यापकों का पदस्थापन नहीं किया जाना, इन विद्यालय में पढ़नेवाले बच्चों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार हीं कहा जाएगा।
बेगूसराय, बरौनी, तेघड़ा, वीरपुर एवं मटिहानी आदि आठ प्रतिशत आवास भत्ता वाले शहरी क्षेत्र घोषित प्रखंडों के विद्यालयों में आवश्यकता से अधिक शिक्षक ठूंस-ठूंसकर दिए जाने और नगर निकाय क्षेत्र के विद्यालयों को वंचित रखने से किसका भला होगा, यह सवाल भी काफी गंभीर और विचारणीय है। शिक्षकों की रिक्ति के लिए विद्यालय के प्रधानाध्यापकों से अधियाचना प्राप्त करना अधिकारी जरूरी क्यों नहीं समझते हैं। अधिकारी आखिर विद्यालय स्तर के निर्णय प्रक्रिया से प्रधानाध्यापकों को लगातार वंचित रखे जाने की मंशा स्पष्ट होनी चाहिए।
हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा
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