कभी कांग्रेस और राज़द का गढ़ रहा अररिया बदलते वक्त के साथ अब भाजपा का मज़बूत गढ़ बन रहा

कभी कांग्रेस और राज़द का गढ़ रहा अररिया बदलते वक्त के साथ अब भाजपा का मज़बूत गढ़ बन रहा
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कभी कांग्रेस और राज़द का गढ़ रहा अररिया बदलते वक्त के साथ अब भाजपा का मज़बूत गढ़ बन रहा


फारबिसगंज/अररिया, 21 अप्रैल(हि.स.)। अररिया सीट आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में कांग्रेस का गढ़ रहा है. बताया जाता है कि इसके बाद जनता दल और फिर बीजेपी ने यहां से जीत हासिल की. वर्तमान हालात में एमवाई समीकरण के कारण आरजेडी की यहां काफी मजबूत स्थिति थी और आगे भी ये स्थिति देखने को मिलती लेकिन माना जा रहा है कि आरजेडी के तरफ़ से बड़ी गलती हुई है। तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफ़राज आलम का टिकट काट कर कहीं ना कहीं बड़ी गलती आरजेडी ने अररिया की सीट पर कर दी है । अब इस सीट पर मुस्लिम वोटर बंट चुका है सरफ़राज़ ख़ेमा और शाहनवाज़ आलम ख़ेमा का वोटर इस बार आरपार की लड़ाई में कूद चुका है।

सरफ़राज़ आलम जो तस्लीमुद्दीन का बड़ा बेटा है वे एक बार इस सीट पर उपचुनाव में सांसद बन चुके है। आरजेडी से ही लेकिन इस बार आरजेडी ने तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे पर दांव लगाया है, जिससे तस्लीमुद्दीन का बड़ा बेटा काफ़ी ख़फ़ा है और कहीं न कहीं बाग़ी तेवर भी दिखा रहे है। सूत्र के हवाले से ये भी खबर है कि तस्लीमुद्दीन का बड़ा बेटा जदयू नेताओं के संपर्क में है वहीं आगे देखने वाली बात है आखिर कब पलटेंगे।

अररिया में वोटरों की कुल संख्या 1,311,225 है. इसमें से महिला मतदाता 621,510 और पुरुष मतदाता 689,715 हैं. अररिया लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं- नरपतगंज, रानीगंज(सुरक्षित), फारबिसगंज, अररिया, जोकिहाट और सिकटी. अररिया सीमांचल क्षेत्र का हिस्सा है और यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल है. 45 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और यादव मतदाता यहां हैं.

अगर इस सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1967 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के तुलमोहन सिंह ने चुनाव जीता था. इसके बाद फिर 1971 के चुनाव में भी वे विजयी रहे थे. 1977 में यहां से भारतीय लोक दल के महेंद्र नारायण सरदार जीते थे. इसके बाद 1980 और 1984 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के डुमर लाल बैठा के हाथ जीत लगी थी. इसके बाद के तीन चुनावों 1989, 1991 और 1996 में जनता दल के टिकट पर सुखदेव पासवान इस सीट से जीतकर दिल्ली पहुंचे थे. वहीं 1998 में बीजेपी के रामजी दास ऋषिदेव जीते थे. फिर 1999 के चुनाव में सुखदेव पासवान आरजेडी के टिकट पर जीते, लेकिन 2004 के चुनाव में सुखदेव पासवान बीजेपी के खेमे से उतरे और फिर इस सीट पर कब्जा किया था. 2009 के चुनाव में बीजेपी ने प्रदीप कुमार सिंह को उतारा और ये सीट जीतने में फिर कामयाब रही थी.

2019 अररिया लोकसभा सीट पर 62.38 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. इस सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी प्रदीप सिंह 6,18,434 वोटों के साथ जीत हासिल की थी. उन्होंने राजद के नेता सरफराज आलम को हराया था. सरफराज आलम को 4,81,193 वोट मिले थे. वहीं बीएमयूपी के उम्मीदवार ताराचंद्र पासवान मात्र 7,266 वोट हासिल कर पाए.

मार्च 2018 के उपचुनाव में अररिया लोकसभा सीट पर कुल सात उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे थे. लेकिन सीधा मुकाबला राष्ट्रीय जनता दल के सरफराज आलम और भाजपा-जेडीयू के संयुक्त उम्मीदवार प्रदीप सिंह के बीच था. भाजपा के प्रदीप सिंह को 4,47,546 वोट मिले और राजद प्रत्याशी सरफराज आलम को 5,09,334 वोट मिले. सरफराज आलम 6,17,88 वोटों से ये चुनाव जीत गए थे.

2014 के लोकसभा चुनाव में अररिया सीट पर आरजेडी ने फतह हासिल की थी जब मोहम्मद तस्लीमुद्दीन ने बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह को हराया था. तस्लीमुद्दीन को 41 प्रतिशत वोट मिले थे. इस चुनाव में आरजेडी के तस्लीमुद्दीन को 4,07,978, बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह को 2,61,474, जेडीयू के विजय कुमार मंडल को 2,21,769 और बीएसपी के अब्दुल रहमान को 17,724 वोट मिले थे. 2014 में इस लोकसभा सीट पर 60.44 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था.

इस बार इस सीट पर 29 प्रत्याशियों ने नामांकन कराया था लेकिन 20 प्रत्याशियों का नामांकन पत्र में विभिन्न त्रुटियों के कारण अस्वीकृत किया गया है अब इस सीट पे 9 प्रत्याशी मैदान में है लेकिन मुक़ाबला दिलचस्प है आपको बता दें कि शत्रुघन मंडल सक्रिय रूप से अररिया आरजेडी के नेता थे वे अररिया लोकसभा सीट से आरजेडी उम्मीदवार की रेस में सबसे आगे थे ऐसी चर्चा थी । लेकिन अंत में शत्रुघन मंडल को निराशा हाथ लगी, जिसके बाद वे निर्दलीय चुनाव लड़ रहे है बताया जाता है कि शत्रुघन मंडल का वोट बैंक अच्छा ख़ासा है और उनके निर्दलीय चुनाव लड़ने से आरजेडी कहीं न कहीं नुक़सान होता हुआ दिख रहा है और भाजपा प्रत्याशी को फ़ायदा होता हुआ कहीं न कहीं दिख रहा है ।

हिन्दुस्थान समाचार/ प्रिंस कुमार /चंदा

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