बिहार के बेगूसराय में शुरू हुई नवपाषाण काल के ''खपली'' गेहूं की खेती
बेगूसराय, 11 दिसम्बर (हि.स.)। बेगूसराय में किसान नित नए प्रयोग कर बिहार के किसानों का ध्यान आकर्षित करते रहे हैं। इसी कड़ी में अब नवपाषाण काल में उपजाए जाने वाले ''खपली'' किस्म के गेहूं की शुरू खेती एकंबा में शुरू हुई है। अब तक इस गेहूं की खेती महाराष्ट्र में होती थी, लेकिन जब बेगूसराय में शुरू हुई खेती धीरे-धीरे बिहार में भी प्रचलित हो जाएगा।
प्रत्यक्षण के तौर पर पहली बार आज किसान सलाहकार और एकंबा के प्रगतिशील किसान अनीश कुमार के एक एकड़ खेत में इसकी बुआई की गई है। इस अवसर पर मंझौल अनुमंडल कृषि पदाधिकारी गौरव कुमार, छौड़ाही प्रखंड कृषि पदाधिकारी पारस नाथ काजी, कृषि समन्वयक पवन कुमार एवं अरविंद मोहन तथा प्रखंड तकनीकी प्रबंधक नंदन कुमार सहित अन्य किसान भी उपस्थित थे।
किसान अनीश कुमार ने बताया कि विचित्रताओं से भरा हुआ विचित्र दिखने वाला खपली गेहूं फाइबर, वसा और प्रोटीन सामग्री से भरपूर है। इसमें कैल्शियम और आयरन की मात्रा सामान्य गेहूं से कम होती है। खपली गेहूं ग्लूटेन-मुक्त नहीं है, लेकिन पाया गया है कि कम संशाधित होने के कारण इसमें नियमित गेहूं की तुलना में ग्लूटेन की मात्रा कम होती है।फाइबर से भरपूर, यह मनुष्य को लंबे समय तक एनर्जी से भरा रखता है। इसलिए वजन घटाने में मदद करता है।
इसके अलावा समृद्ध फाइबर सामग्री कार्बोहाइड्रेट के पाचन में देरी करती है, जो रक्तप्रवाह में ग्लूकोज की रिहाई को धीमा कर देती है। रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर बनाए रखती है और इसे मधुमेह वाले लोगों के लिए आदर्श बनाती है। इसके साथ ही यह अनाज पॉलीफेनोल्स से भरपूर होता है, जो कैंसर, हृदय रोगों और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों को रोकने में मदद करता है। इसे सामान्य गेहूं की तरह इस्तेमाल किया जाता है, रोटियां लजीज बनती है।
खपली एम्मर के रूप में भी जाना जाता है, खपली गेहूं अनाज का एक प्राचीन रूप है, जहां खपली का अर्थ है ''क्रस्टी'' और आम तौर पर महाराष्ट्र में उगाया जाता है। खाद्य इतिहासकारों के अनुसार गेहूं की इस किस्म की खेती पहली बार लगभग दस हजार साल पहले मध्य पूर्व में नवपाषाण क्रांति के एक भाग के रूप में की गई थी। इस गेहूं की बाहरी परत हल्के भूरे रंग की होती है और बहुत सख्त होती है जो अनाज को लंबे समय तक जीवित रहने में सक्षम बनाती है।
अनुमंडल कृषि पदाधिकारी गौरव कुमार ने बताया कि दस हजार साल पहले मध्य पूर्व काल के इस गेहूं के बीज को किसानों ने ही सुरक्षित रखा। इसका बीज किसी प्रकार के भी रासायनिक दवा से मुक्त है, देश में अब तक इसके लिए किसी प्रकार के रिसर्च की जानकारी नहीं है। पूर्णतया देसी तरीके से महाराष्ट्र में इस प्राचीन काल के गेहूं की खेती होती है। स्वास्थ्य के लिए हेल्दी है, अमरावती क्षेत्र के आसपास इसका काफी विस्तार हो रहा है।
उन्होंने कहा कि पहली बार एकंबा में खेती हुई है और यहां से निकालकर इसे पूरे बिहार में ले जाया जाएगा। आज सामान्य गेहूं जहां 25 सौ रुपये क्विंटल है, वहीं इस गेहूं का भाव 12 हजार से 16 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। अमेजॉन कंपनी इसे चार सौ रुपये प्रति किलो के दर से बेचती है। इस अवसर पर उपस्थित किसानों ने इसके बुवाई एवं पैदावार से लेकर कटनी और रखरखाव के विभिन्न पहलुओं की विस्तार से जानकारी ली। अन्य किसानों को भी इस किस्म के गेहूं की खेती करने के लिए प्रेरित करने की बातें कही।
हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा
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