आत्मा को जन्म मरण के बंधन से मुक्त करना है तो अपनी आत्मा पर विजय पाना सीखें : स्वामी महेशानंद बाबा
सहरसा,06 मार्च (हि.स.)। नगर के गांधी पथ स्थित वार्ड नंबर 39 मे स्थित संतमत सत्संग मंदिर परिसर में बुधवार से सप्तदिवसीय ध्यान-साधना शिविर का शुभारंभ किया गया।पहले दिन के प्रथम पाली मे प्रवचन करते हुए स्वामी महेशानंद बाबा ने कहा कि आत्मा को जन्म मरण के बंधन से मुक्त करना है तो अपनी आत्मा पर विजय पाना होगा,जो ऐसा कर पाने में सफल होते हैं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।वही गुस्से को त्यागना सबसे बड़ी साधना है।कोई तपस्या न कर सके तो कम से कम गुस्से को शांत रखने का तो प्रयास करना ही चाहिए।
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण भी एक सामान्य प्राणी की भांति जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे।रुक्मिणी विवाह पर चर्चा करते हुए अनुराग कृष्ण ने कहा कि कन्यादान करने वालों को पुण्य की प्राप्ति होती है।उन्होंने दहेजप्रथा का विरोध करते हुए कहा कि अपनी स्वेच्छा से कन्या के माता-पिता जो भी कन्या को समर्पित करे उसे गोविंद का प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए ।
स्वामी नबलकिशोर जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के चरित्र की गहराई का विश्लेषण उसके कर्मों से किया जाता है।धर्म मनुष्य में परोपकार और धार्मिकता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।यह सूर्य के किरण की तरह है, जो आदमी के दिल को अंधेरे से रोशनी की तरफ ले जाता है।अगर आप किसी धर्म की प्रथाओं में विश्वास रखते हैं तो देखेंगे कि आप अधिक अनुशासित, सशक्त, और दयालु बन जाते हैं।
धार्मिक कथा सुनने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।साथ ही एक मजबूत आभा विकसित होती है।स्वामी शभ्भुनंद बाबा ,स्वामी योगानंद बाबा ,स्वामी श्यामसुदंर बाबा ने कहा कि सत्संग करने वालों को किसी चीज की कमी नहीं रहती है। जैसे सोने की दुकान में जाने से पैसे की आवश्यकता होती है। इसी तरह सत्संग में जाने के लिए आध्यात्मिक पूंजी की आवश्यकता होती है, जिनके पास आध्यात्मिक पूंजी नहीं रहता है। उसे सत्संग सुनने में अच्छा नहीं लगता है।लेकिन वह अपना सारा कामकाज करते हुए सत्संग एवं साधना में लगे रहते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय/चंदा
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