ब्रज एवं बरसाना से भी अनूठा होता है सामाजिक समरसता व सौहार्दपूर्ण बनगांव का घुमौर होली
सहरसा,24 मार्च (हि.स.)। पूरे देश में रंगों का त्योहार होली काफी धूमधाम से मनाई जाती है।वही ब्रज एवं बरसाने की लठमार होली विश्व विख्यात है जबकि मिथिला में भी होली पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।वही जिले के कहरा प्रखंड स्थित वनगांव की घुमौर होली काफी प्रसिद्ध है।
ग्रामीण उमाशंकर खां,पारस कुमार झा,सुमन समाज, अंशु झा,गोपाल झा बताते है कि आज से सैकड़ो वर्ष पूर्व बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई के द्वारा इस घुमौर होली की शुरुआत की गई जो वर्तमान मे भी यह परम्परा आज भी बदस्तूर जारी है।यह होली सामाजिक समरसता के लिए विख्यात है।
उन्होंने बताया कि इस घुमौर होली के दौरान सभी ग्रामीण भगवती स्थान मे एकत्रित होकर सभी एकसाथ होली खेलते है।वही मानव पिरामिड का निर्माण कर आपसी सौहार्द का प्रदर्शन किया जाता है। उन्होंने बताया थी 18 वीं सदी में लोक देवता संत लक्ष्मी नाथ गोसाई द्वारा होली के महत्व को लेकर सामाजिक सौहार्द की दृष्टिकोण से शुरुआत की गई थी। जिसके कारण बनगांव की होली खेलने और देखने दूर दराज के लोग भी अन्य संप्रदाय एवं अन्य जगहों के कई राजनेता बनगांव की होली में भाग लेते हैं। जिसके कारण बनगांव की होली देश भर के ब्रज और वृंदावन की होली को की तरह एक अलग पहचान बना ली है।
बनगांव की होली में एक साथ हजारों की संख्या में आपसी सद्भाव के साथ होली मनाने के कारण ही बनगांव की होली ने अपनी अलग पहचान बनाई है। बनगांव में होली के दिन हर एक टोले मोहल्लों से सैकड़ो की संख्या में लोग फगुआ के गीत गाते और होली खेलते निकलते हैं। सभी ग्रामीण पारंपरिक तरीके से भगवती घर पहुंच कर गाते झूमते एवं होली मनाते हैं। जिसके कारण पूरा वातावरण भी रंगीन दिखता है और सच में महसूस होता है कि होली रंगों का त्यौहार है।
ज्ञात हो कि बनगांव की अनूठी होली को देखते हुए कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ आलोक रंजन द्वारा बनगांव की होली को पारंपरिक तरीके से मनाने के लिए सरकारी मान्यता देते हुए तीन दिवसीय होली महोत्सव मनाने की मंजूरी दी थी। जिसे बनगांव की होली को संबर्द्धित एवं संरक्षित करते हुए उद्देश्य पूर्ण बनाया जा सके। इस तीन दिवसीय महोत्सव में मिथिला एवं देश भर के सुप्रसिद्ध कलाकारों द्वारा गीतों के माध्यम से सांस्कृतिक होली खेली जाती है।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय/चंदा
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