एक बार फिर सजने को तैयार है ऐतिहासिक खगड़ा मेला
खगड़ा मेला आयोजन के लिए बंदोबस्त हेतु खगड़ा मेला डाक सैरात की कार्रवाई पूर्ण, 15 जनवरी को खगड़ा मेला महोत्सव निर्धारित
किशनगंज,19दिसंबर(हि.स.)। जिलाधिकारी, तुषार सिंगला के निर्देशानुसार ऐतिहासिक खगड़ा मेला आयोजन की तैयारियां पूर्ण की जा रही है। इस वर्ष मेला आयोजन के निमित्त मेला बंदोबस्त हेतु निविदा की तिथि पर डाक संपन्न करवाया गया। स्थानीय लोगो के बढ़ चढ़ कर रुचि लेने पर जिला प्रशासन द्वारा अधिकतम राजस्व पर सशर्त डाक संपन्न की गई।
खगड़ा मेला सैरात के संबंध में अपर समाहर्त्ता, अनुज कुमार ने बताया कि 18 दिसंबर को जिलाधिकारी के समक्ष निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए खगड़ा मेला डाक ₹1,31,11,000 (अधिकतम राशि) मेला सैरात हेतु उच्च राशि पर मेला बंदोबस्त किया गया है। तदालोक में निर्धारित प्रक्रिया पूर्ण कर शर्तो के अधीन खगड़ा मेला सैरात बंदोबस्त स्थानीय व्यक्ति को प्राप्त हुआ है। जानकार बताते हैं कि मेला का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। कभी यह सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला था। भारत ही नहीं बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, मलेशिया, अफगानिस्तान आदि देशों के व्यापारी यहां आते थे एवं अपने विशिष्ट उत्पादों के स्टॉल लगाकर मेले की रौनक में चार चांद लगाते थे।
जानकार बताते हैं कि तत्कालीन खगड़ा नवाब सैयद अता हुसैन ने मेले की नींव रखी थी। तब अंग्रेजी हुकूमत थी। पूर्णिया के समाहर्ता अंग्रेज अधिकारी ए. विक्स थे। उन्होंने इस मेले में काफी सहयोग किया था एवं पहली बार इस मेले का नाम उन्हीं के नाम पर विक्स मेला रखा गया। 1956 में जमींदारी प्रथा उन्मूलन के बाद यह मेला राजस्व विभाग के अधीन आ गया। उस वक्त मेला अपने पूर्ण शबाब पर था। मेले की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1950 में इस मेले में पशुओं की बिक्री से 80 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। ये सभी इतिहास मेला गेट के आगे बने स्तूप पर दर्ज है।इतना ही नहीं मेले का क्षेत्रफल भी कई वर्ग किलोमीटर में हुआ करता था। ये जगह आज भी हाथीपट्टी, मवेशीपट्टी आदि के नाम से जाने जाते हैं। तरह-तरह के पशु पक्षियों के व्यापारी भी यहां आते थे।
मेले में आए व्यापारियों में अपने प्रतिष्ठानों को सजाने की होड़ होती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें पता था कि सर्वाधिक अच्छे स्टॉल को खगड़ा नवाब खुद अपने हाथों सम्मानित करते थे। बहुतायत नवाब साहब स्वयं शाम के बाद मेले का मुआयना करने निकलते थे। मेले का नाम खगड़ा क्यों पड़ा इसकी कोई ठोस जानकारी लोगों को नहीं है। कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि यहां खगड़ा नाम के घास का मैदान था जिस कारण इस क्षेत्र का नाम खगड़ा पड़ा। 80 के दशक में ही मेला अपने ढ़लान पर गया और एक समय ऐसा आया जब कई वर्षों तक मेले का संचालन भी नहीं हो सका। सन 2000 में इस मेले को फिर से सजाने का प्रयास शुरु हुआ। आम लोगों ने प्रयास शुरु किया तो प्रशासन का भी सहयोग मिला। वर्ष 2003 में तत्कालीन डीएम ने मेले की शानदार परंपरा को फिर से पुर्नजीवित करने का प्रयास किया। मुख्य द्वार के सामने स्तूप का निर्माण कराया गया। इसपर मेले के गौरवशाली अंकित को उकेरा गया।
मेला का क्षेत्रफल सिकुड़कर दस फीसदी से भी कम रह चुका है। विगत साल मेले के दौरान ही तत्कालीन डीएम ने इसे राजकीय मेला का दर्जा दिलाए जाने के लिए प्रयास करने की घोषणा की थी। इस मेले को लेकर आज भी शहरवासियों सहित आस-पास के क्षेत्र के लोगों में काफी उत्साह होता है। लोग वर्ष भर इस मेले के इंतजार में रहते हैं। विशेषकर बच्चों में इस मेले को लेकर विशेष आकर्षण होता है। मेले का क्षेत्रफल सिकुड़ जाने व विभिन्न तरह के पशु पक्षियों के नहीं आने के बावजूद आधुनिक खेल तमाशों का आकर्षण बच्चों में बना हुआ है। गौर करे कि जनवरी के दूसरे सप्ताह में खगड़ा मेला आयोजन होने की प्रबल संभावना है। शहिद आसफाक उल्लाह खां स्टेडियम, खगड़ा में 15 जनवरी को खगड़ा मेला महोत्सव आयोजित किया जाएगा।
हिन्दुस्थान समाचार/धर्मेन्द्र/चंदा
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