आगे बढ़ने का सबसे बड़ा हथियार शिक्षा : अशोक चौधरी

आगे बढ़ने का सबसे बड़ा हथियार शिक्षा : अशोक चौधरी
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आगे बढ़ने का सबसे बड़ा हथियार शिक्षा : अशोक चौधरी


पटना, 18 जनवरी (हि.स.)। आगे बढ़ने के लिए शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है। कोई भी देश या समाज बगैर अच्छी शिक्षा के तरक्की हासिल नहीं कर सकता।' राज्य के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने उक्त बातें 18 जनवरी को सरदार पटेल भवन स्थित बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सभाकक्ष में आयोजित 'इनसे मिलिए' कार्यक्रम में कही।

अपने संबोधन में मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि मुझे यहां आप लोगों ने बुलाया, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। समाज में अमूमन राजनेताओं को कोई सुनना नहीं चाहता। नेता है, तो खराब ही है, यह आमफहम धारणा हिंदी फिल्मों से बनी है जबकि समाज में और हर पेशे में अच्छे लोग भी हैं, बुरे लोग भी हैं। नीतीश कुमार के विजनरी नेतृत्व की सराहना करते हुए चौधरी ने कहा कि विकास ने किस तेजी से रफ्तार पकड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज बिहार का वार्षिक बजट 2,66,000 करोड़ रुपये से अधिक का हो चुका है। गरीबों, दलितों, पिछड़ों के बच्चों को उन्होंने मुख्यधारा से जोड़ा।

अशोक चौधरी ने कहा कि बिहार देश का इकलौता राज्य है, जहां 10 रुपये में इंजीनियरिंग की पढ़ाई बच्चे कर रहे हैं। 21 वीं सदी के बेहतर बिहार की परिकल्पना और सपने को साकार करने के लिए हमारे नेता दिन-रात काम कर रहे हैं। सात निश्चय पार्ट-1 और पार्ट-2 की विस्तृत चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार में विकास की एक लंबी लकीर खींच दी है। बिहार अब रुकने वाला नहीं है। बिहार दौड़ चला है।

अपने पिता और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नौ बार के विधायक, पूर्व मंत्री स्व. महावीर चौधरी का स्मरण करते हुए उन्होंने बताया कि वह शिक्षा पर बहुत जोर देते थे। हमारे परिवार में सभी भाई ऊंचे ओहदे पर हैं और यह सब उच्च शिक्षा और अच्छी शिक्षा की बदौलत ही हुआ है। मंत्री ने खुद भी पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री के साथ-साथ पीएचडी की उपाधि हासिल कर रखी है। चौधरी ने बच्चों की शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का अनुरोध किया। कहा कि अपने बच्चों के लिए तमाम व्यस्तताओं के बावजूद समय निकालिए।

अपने राजनीतिक जीवन की चर्चा करते हुए चौधरी ने कहा कि मेरे पिताजी नहीं चाहते थे कि उनका कोई लड़का राजनीति में आए। लेकिन मैं दसवीं कक्षा के बाद से ही राजनीति में आने का सपना देखने लगा था। पिताजी की नजरों में पढ़ाई में सबसे कमजोर मैं ही था। ऐसे में उनकी राजनीतिक विरासत संभालने का मौका मुझे ही मिला। वर्ष 2000 में पहली बार मैंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। बिहार सरकार में मंत्री भी बना।

हिन्दुस्थान समाचार/ गोविन्द

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