वरिष्ठ रंग निर्देशक भानु भारती को मिलेगा 2023 का रामविनय रंग सम्मान

वरिष्ठ रंग निर्देशक भानु भारती को मिलेगा 2023 का रामविनय रंग सम्मान
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वरिष्ठ रंग निर्देशक भानु भारती को मिलेगा 2023 का रामविनय रंग सम्मान


बेगूसराय, 15 दिसम्बर (हि.स.)। 2023 का रंगकर्मी रामविनय रंग सम्मान देश के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ रंग निर्देशक भानु भारती को दिया जाएगा। बिहार में रंगकर्म की राजधानी कहे जाने वाले बेगूसराय में 16 से 21 दिसम्बर तक होने वाले 9वें आशिर्वाद राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के दौरान आशिर्वाद रंग मंडल द्वारा उन्हें यह सम्मान प्रदान जाएगा।

ग्रामीण और शहरी दोनों के साथ काम कर भारतीय रंगमंच को पूरी तरह से एक नया अर्थ देने वाले भानु भारती को यह सम्मान महोत्सव के अंतिम दिन 21 दिसम्बर को दिया जाना है। महोत्सव निदेशक अमित रौशन ने बताया कि 1947 में राजस्थान के अजमेर में पैदा हुए भानु भारती ने 1973 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

उन्होंने सर्वश्रेष्ठ ऑल राउंड छात्र और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का भी पुरस्कार जीता है। बाद में टोक्यो विश्वविद्यालय में जापान के पारंपरिक रंगमंच का अध्ययन किया। इनके खाते में 50 से अधिक प्रोडक्शंस हैं तथा प्रमुख कृति है चंद्रमा सिंह उर्फ चमकू, रास गंधर्व, अजर का ख्वाब और यमगाथा। उनकी प्रस्तुति पशु गायत्री, काई कथा, अमर बीज आदि भील जनजाति के अनुष्ठान के अध्ययन पर आधारित हैं।

उन्होंने भील के नृत्य थियेटर गवरी पर एक फिल्म का निर्देशन भी किया। 1976 से 1978 तक राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के नाटक विभाग का नेतृत्व किया। उन्होंने एनएसडी सहित कई प्रसिद्ध संस्थानों में नाटकीय साहित्य, प्राकृतिक डिजाइन और अभिनय भी पढ़ाया है। श्री राम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्टस दिल्ली के निदेशक के रूप में कार्य किया तो भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर का भी नेतृत्व किया है।

उदयपुर के समीप गोगुंडा इलाके के भील आदिवासियों के साथ काम किया तथा राजस्थान संगीत नाटक अकादमी और राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। वे ऐसे कलाकार हैं जो पात्रों की आंतरिक मनोवैज्ञानिक दुनिया एवं नाटक की अंतर्निहित दार्शनिक और पौराणिक अंतर्धाराओं को प्रकट करने के लिए पर्याप्त हैं। भानु भारती ने कई प्रासंगिक सामाजिक मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण प्रदान करने के लिए नाटकों का निर्देशन किया था।

अभिनेताओं की ग्रामीण और शहरी दोनों नस्लों के साथ काम कर भारतीय रंगमंच को पूरी तरह से एक नया अर्थ दिया। इन्होंनें राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के भील जनजाति के अनुष्ठानों पर आधारित मंचन के अलावा चार दशकों के करियर में 70 से अधिक नाटकों में गिने जाते हैं। 2004 में उनके नाटकों का तीन दिवसीय थिएटर फेस्टिवल टैगोर आयोजित किया जा चुका है।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा

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