खेती-किसानी के लिए जरूरी है मृदा और जल का संतुलन : डॉ. मनीष कुमार
बेगूसराय, 05 दिसम्बर (हि.स.)। विश्व मृदा दिवस के अवसर पर मंगलवार को जिला भर में विभिन्न जगहों पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। जहां की कृषि वैज्ञानिकों ने मिट्टी जांच एवं मृदा के प्रमुख मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की तथा किसानों को जागरूक किया।
छौड़ाही में आयोजित कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ से आए कृषि वैज्ञानिक डॉ. मनीष कुमार ने कहा कि मिट्टी खेती के उपयोग में आने वाला मुख्य साधन है। मिट्टी की संरचना में 45 प्रतिशत खनिज तत्व, पांच प्रतिशत जैविक तत्व तथा 25 प्रतिशत वायु एवं जल है। जब से संघन खेती की शुरुआत हुई साल में दो से तीन फसलों का प्रचलन बढ़ा।
इससे मृदा में उपस्थित खनिज तत्वों की मात्रा में भारी गिरावट दर्ज की गई। हरित क्रांति के शुरुआती दौर में दो किलो नेत्रजन से हमें एक सौ किलोग्राम अन्न उत्पादन प्राप्त हो जाता था। लेकिन अब दो किलो नेत्रजन में मात्र 12 से 15 किलोग्राम के बीच पहुंच गया है। इसका सबसे प्रमुख कारण है पोषक तत्वों की तीव्र गति से दोहन का होना।
इन्हीं सब बातों की चिंता करते हुए पांच दिसम्बर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। जो कि थाइलैंड के एक सम्राट एच.एम. भूमि बोल के याद में मनाया जाता है। जिन्होंने मृदा के संरक्षण में बहुत कार्य किया। इस जलवायु परिवर्तन के दौर में सबसे ज्यादा अगर ध्यान देने योग्य चीज हैं तो मृदा और जल।
हम इनका संतुलन स्थापित नहीं कर पाए तो आने वाली पीढियां को पर्यावरण संबंधित कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। टिकाऊ कृषि पद्धति किसी भी हालत में संभव नहीं हो पाएगी। मौके पर प्रगतिशील किसान और किसान सलाहकार अनीश कुमार सहित अन्य सलाहकार एवं कृषि विभाग से जुड़े अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/गोविन्द
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