अनुपम सौभाग्यशाली है भारत की भूमि, जो चलता है वही मंजिल पाता है : साध्वी शीतल



बेगूसराय, 22 नवम्बर (हि.स.)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा शाहपुर में आयोजित श्रीहरि कथा में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है। कथा के दूसरे दिन मंगलवार को साध्वी शीतल भारती ने कहा कि समाज में तथाकथित संत कालनेमि की तरह संत का वेश धारण कर लोगों की श्रद्धा को ठगने के लिए अनेकों चमत्कार करके दिखाते हैं। लेकिन संत की पहचान कोई बाहरी चमत्कार नहीं होता है, संत की पहचान ब्रह्म ज्ञान से होता है, जिस ज्ञान के द्वारा अंतर्धट में ईश्वर का दर्शन प्राप्त होता है।
उन्होंने कहा कि भारत की भूमि का यह अनुपम सौभाग्य रहा है कि इस भूमि पर अनंतकाल से ऋषि मुनि, संत और भक्तगण ज्ञान और भक्ति की गंगा को बहाते आ रहे हैं। रामभक्त हनुमान का प्रेम और सेवा का वर्णन स्वयं श्रीराम अपने मुख से बार-बार करते रहे है। हनुमान जब मां सीता की खोज में निकले तो मार्ग में अनेकों बाधाएं आई, लेकिन कोई बाधाएं उनका मार्ग रोक नहीं सकी। क्योंकि जब जीवन में लक्ष्य को पाने का उत्साह, उमंग और जोश होता है तो इंसान सभी विध्न बाधाओं को परास्त कर आगे निकल जाता है।
उन्होंने कहा कि आशुतोष महाराज अक्सर अपने भक्तों को समझाते हुए कहते रहे थे कि बाधाएं कब बांध सकी है आगे बढ़ने वालों को, विपदाएं कब मार सकी है मर कर जीने वालों को। जब मन में लक्ष्य को पाने के लिए इंसान चलता है तो मंजिल जरुर पाता है। क्योंकि चलने वाला मंजिल पाता है, बैठा हुआ तो पीछे ही रहता है। वायु और रक्त हमेशा चलायमान रहता है, बहते नदी के जल से आचमन भी होता है और अभिषेक भी, लेकिन तालाब के ठहरे पानी से ना तो आचमन होता है और ना हीं अभिषेक। हनुमंत जी को ठगने के लिए कालनेमि संत का वेश बनाकर आया और कहा कि लखन के लिए संजीवनी बूटी लाने जा रहे हो। मेरी शरण में आ जाओ तो मैं ऐसा मंत्र दूंगा, जिससे तुम पल में वहां पहुंच जाओगे, लेकिन हनुमान प्रभु राम की कृपा से बच गए।
हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र
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