दुनिया के सभी तीर्थ और सप्तपुरियों से भी अधिक है प्रयाग की महिमा, ऐसे ही नहीं कहते इसे 'तीर्थराज'

प्रयागराज केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि भारतीय आस्था, तप और पुण्य का अनमोल केंद्र है। इसका संगम स्नान मोक्षदायिनी है, और यहां दान, यज्ञ, व्रत आदि करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। यह भूमि भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक वैभव का प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रयागराज, जिसे तीर्थों का राजा कहा जाता है, भारतीय धर्म और संस्कृति में एक विशिष्ट स्थान रखता है। इसकी महत्ता का उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में विस्तार से मिलता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, शेषनाग से ऋषियों ने पूछा कि प्रयागराज को तीर्थराज क्यों कहा जाता है। शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक समय सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की गई। भारत के समस्त तीर्थों को एक तुला के पलड़े पर रखा गया और दूसरे पलड़े पर केवल प्रयागराज को। परिणामस्वरूप, प्रयागराज का पलड़ा भारी रहा। दूसरी बार सप्तपुरियों को तुला पर रखा गया, फिर भी प्रयागराज का पलड़ा झुका रहा। इस प्रकार प्रयागराज की सर्वोच्चता प्रमाणित हुई।  यह पवित्र भूमि केवल तीर्थस्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है। यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, जो मोक्षदायिनी माना गया है। इस संगम में स्नान करने से पापों से मुक्ति और पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वयं ब्रह्माजी ने इस भूमि पर यज्ञ किया था और ऋषि-मुनियों ने यहां तपस्या कर स्वयं को धन्य माना।  महर्षि मार्कण्डेय का वर्णन मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने महर्षि मार्कण्डेय से पूछा कि प्रयागराज क्यों जाना चाहिए और संगम स्नान का क्या महत्व है। महर्षि ने बताया कि यह क्षेत्र प्रजापति की तपोभूमि है, जहां स्नान करने से दिव्य लोक की प्राप्ति होती है और पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है। पद्मपुराण में कहा गया है कि इस पवित्र भूमि पर किया गया दान अनंत पुण्य प्रदान करता है।  पुराणों और महाकाव्यों में महिमा स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, वामन पुराण, और महाभारत सहित अनेक ग्रंथों में प्रयागराज की महिमा का उल्लेख है। महाभारत में इसे "तीर्थराज" कहा गया है, और रामायण में ऋषि भरद्वाज ने श्रीराम को संगम की पवित्रता का वर्णन करते हुए वहां ठहरने का सुझाव दिया था।  रामचरितमानस में वर्णित प्रयागराज श्रीरामचरितमानस में माघ मास के दौरान प्रयागराज की महिमा का विशेष वर्णन मिलता है:  माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई।। देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।  अर्थात, माघ मास में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर तीर्थराज प्रयाग में देवता, दानव, किन्नर और मनुष्य त्रिवेणी में स्नान करने के लिए आते हैं। वे श्रद्धापूर्वक स्नान कर भगवान विष्णु के चरणों का पूजन करते हैं और अछयवट का दर्शन कर आनंदित होते हैं।
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 प्रयागराज केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि भारतीय आस्था, तप और पुण्य का अनमोल केंद्र है। इसका संगम स्नान मोक्षदायिनी है, और यहां दान, यज्ञ, व्रत आदि करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। यह भूमि भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक वैभव का प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रयागराज, जिसे तीर्थों का राजा कहा जाता है, भारतीय धर्म और संस्कृति में एक विशिष्ट स्थान रखता है। इसकी महत्ता का उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में विस्तार से मिलता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, शेषनाग से ऋषियों ने पूछा कि प्रयागराज को तीर्थराज क्यों कहा जाता है। शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक समय सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की गई। भारत के समस्त तीर्थों को एक तुला के पलड़े पर रखा गया और दूसरे पलड़े पर केवल प्रयागराज को। परिणामस्वरूप, प्रयागराज का पलड़ा भारी रहा। दूसरी बार सप्तपुरियों को तुला पर रखा गया, फिर भी प्रयागराज का पलड़ा झुका रहा। इस प्रकार प्रयागराज की सर्वोच्चता प्रमाणित हुई।

यह पवित्र भूमि केवल तीर्थस्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है। यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, जो मोक्षदायिनी माना गया है। इस संगम में स्नान करने से पापों से मुक्ति और पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वयं ब्रह्माजी ने इस भूमि पर यज्ञ किया था और ऋषि-मुनियों ने यहां तपस्या कर स्वयं को धन्य माना।

प्रयागराज केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि भारतीय आस्था, तप और पुण्य का अनमोल केंद्र है। इसका संगम स्नान मोक्षदायिनी है, और यहां दान, यज्ञ, व्रत आदि करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। यह भूमि भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक वैभव का प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रयागराज, जिसे तीर्थों का राजा कहा जाता है, भारतीय धर्म और संस्कृति में एक विशिष्ट स्थान रखता है। इसकी महत्ता का उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में विस्तार से मिलता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, शेषनाग से ऋषियों ने पूछा कि प्रयागराज को तीर्थराज क्यों कहा जाता है। शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक समय सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की गई। भारत के समस्त तीर्थों को एक तुला के पलड़े पर रखा गया और दूसरे पलड़े पर केवल प्रयागराज को। परिणामस्वरूप, प्रयागराज का पलड़ा भारी रहा। दूसरी बार सप्तपुरियों को तुला पर रखा गया, फिर भी प्रयागराज का पलड़ा झुका रहा। इस प्रकार प्रयागराज की सर्वोच्चता प्रमाणित हुई।  यह पवित्र भूमि केवल तीर्थस्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है। यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, जो मोक्षदायिनी माना गया है। इस संगम में स्नान करने से पापों से मुक्ति और पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वयं ब्रह्माजी ने इस भूमि पर यज्ञ किया था और ऋषि-मुनियों ने यहां तपस्या कर स्वयं को धन्य माना।  महर्षि मार्कण्डेय का वर्णन मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने महर्षि मार्कण्डेय से पूछा कि प्रयागराज क्यों जाना चाहिए और संगम स्नान का क्या महत्व है। महर्षि ने बताया कि यह क्षेत्र प्रजापति की तपोभूमि है, जहां स्नान करने से दिव्य लोक की प्राप्ति होती है और पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है। पद्मपुराण में कहा गया है कि इस पवित्र भूमि पर किया गया दान अनंत पुण्य प्रदान करता है।  पुराणों और महाकाव्यों में महिमा स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, वामन पुराण, और महाभारत सहित अनेक ग्रंथों में प्रयागराज की महिमा का उल्लेख है। महाभारत में इसे

महर्षि मार्कण्डेय का वर्णन
मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने महर्षि मार्कण्डेय से पूछा कि प्रयागराज क्यों जाना चाहिए और संगम स्नान का क्या महत्व है। महर्षि ने बताया कि यह क्षेत्र प्रजापति की तपोभूमि है, जहां स्नान करने से दिव्य लोक की प्राप्ति होती है और पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है। पद्मपुराण में कहा गया है कि इस पवित्र भूमि पर किया गया दान अनंत पुण्य प्रदान करता है।

पुराणों और महाकाव्यों में महिमा
स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, वामन पुराण, और महाभारत सहित अनेक ग्रंथों में प्रयागराज की महिमा का उल्लेख है। महाभारत में इसे "तीर्थराज" कहा गया है, और रामायण में ऋषि भरद्वाज ने श्रीराम को संगम की पवित्रता का वर्णन करते हुए वहां ठहरने का सुझाव दिया था।

रामचरितमानस में वर्णित प्रयागराज
श्रीरामचरितमानस में माघ मास के दौरान प्रयागराज की महिमा का विशेष वर्णन मिलता है:

माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।

अर्थात, माघ मास में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर तीर्थराज प्रयाग में देवता, दानव, किन्नर और मनुष्य त्रिवेणी में स्नान करने के लिए आते हैं। वे श्रद्धापूर्वक स्नान कर भगवान विष्णु के चरणों का पूजन करते हैं और अछयवट का दर्शन कर आनंदित होते हैं।

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