प्रयागराज के नामकरण का इतिहास और पौराणिक महत्व
प्रयागराज के नामकरण से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं और श्लोक भारतीय संस्कृति में गहराई से समाहित हैं। "प्रयाग" शब्द का अर्थ होता है "यज्ञों का संगम," और इसे भारत के तीर्थों का राजा माना जाता है। कई प्राचीन ग्रंथों में प्रयागराज की महिमा का वर्णन किया गया है, जिनमें विशेष रूप से महाभारत, वायु पुराण, और मत्स्य पुराण प्रमुख हैं। निम्नलिखित श्लोकों और उनकी व्याख्या के माध्यम से प्रयागराज की पौराणिक महत्ता को समझा जा सकता है:
वायु पुराण
त्रिषु लोकषु विख्यातं तीर्थं त्रैलोक्यपावनम्।
सर्वतीर्थमयं दिव्यं प्रयागं तीर्थनायकम्॥
अर्थ: यह केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि स्वर्ग और पाताल लोक में भी पूजनीय है। इसकी तुलना अन्य तीर्थों से नहीं की जा सकती क्योंकि यह समस्त तीर्थों का शिरोमणि है।
महाभारत (वन पर्व)
गङ्गायमुनयोः संधौ यत् तीर्थं तीर्थनायकम्।
पुण्यं च पावनं चैव महापातकनाशनम्॥
अर्थ: जहां गंगा और यमुना नदियों का संगम होता है, वह तीर्थों का राजा है। यह स्थान पवित्र है और यहां स्नान करने से महान पापों का भी नाश हो जाता है।
मत्स्य पुराण
प्रयागं मानवश्रेष्ठं सर्वपापप्रणाशनम्।
अत्र देवाः सदा स्नात्वा पुनरलोकं न गच्छन्ति॥
अर्थ: प्रयागराज मानवों के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है, जो सभी पापों का नाश करने वाला है। यहां देवता भी स्नान कर मोक्ष प्राप्त करते हैं और फिर पुनः जन्म नहीं लेते।
स्कन्द पुराण
यत्र कृत्वा च संकल्पं यज्ञियं फलमाप्नुयात्।
सर्वतीर्थमयं तीर्थं प्रयागाख्यमनुत्तमम्॥
अर्थ: जहां संकल्प लेने मात्र से यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है, वही स्थान है प्रयाग, जो सभी तीर्थों का समन्वय करने वाला और अद्वितीय है। प्रयागराज में किसी भी शुभ कार्य का संकल्प करने से उसी प्रकार का पुण्य फल मिलता है, जैसा कि बड़े यज्ञों से प्राप्त होता है। यह अद्वितीय तीर्थ है।