काशी का प्राचीन शिव मंदिर, जहां भगवान राम को मिली थी ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति - कर्दमेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता
भगवान शिव की नगरी काशी अनोखी ही नहीं बल्कि सभी शहर से अलग है. सावन में तो यहां के शिवालयों का महत्व तो और भी बढ़ जाता है. आज हम आपको काशी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगा, जो पुराणों के साथ-साथ उसकी आकृति भी भारत के कई परंपराओं को प्रदर्शित करता है. ये मंदिर काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का यह पहला पड़ाव है. इसे कर्मदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार यह काशी का सबसे प्राचीन मंदिर है.

भोलेनाथ की नगरी काशी में कई प्राचीन मंदिर हैं। इसमें कर्दमेश्वर महादेव मंदिर का विशेष स्थान है। 12वीं सदी में नागर शैली में निर्मित इस मंदिर में सावन में दर्शन-पूजन का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि रावण बध के बाद अयोध्या लौटने पर महर्षि वशिष्ठ के कहने पर प्रभु श्री राम ने माता-सीता संग कर्दमेश्वर शिवलिंग का दर्शन किया था। इसके बाद उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी।
कर्दमेश्वर महादेव मंदिर को काशी का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। कंदवा गांव में स्थित होने के कारण इस मंदिर को कर्दमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 12 वीं सदी में हुआ था। इसे गढ़वाल राजाओं ने बनवाया था। कर्दमेश्वर महादेव मंदिर नागर स्थापत्य कला का उदाहरण है। भारत में मुख्य रूप से तीन प्रकार के मंदिर हैं- नागर शैली, द्रविड़ शैली और बेसर शैली के। कर्दमेश्वर मंदिर नागर स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है। यह पंचरथ शैली में बना है। यानी इस मंदिर में एक ही प्लेटफॉर्म या चबूतरे पर मंदिर के पांचों अंग- गर्भगृह, प्रदक्षिणा पथ, अंतराल, महामण्डप तथा अर्द्धमण्डप का निर्माण किया गया है। कर्दमेश्वर मंदिर पूर्वमुखी है।

मंदिर को लेकर एक अन्य मान्यता है, इसके अनुसार शिवलिंग की स्थापना कर्दम ऋषि ने की थी, इसीलिए इसका नाम कर्दमेश्वर पड़ा। इसके सामने एक बड़ा कुंड है, जिसका नाम कर्दम कुंड है। माना जाता है कि इस सरोवर का निर्माण कर्दम ऋषि के आंसुओं से हुआ था। वैसे ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, इस कुंड का निर्माण बंगाल की रानी भवानी ने 18वीं शताबदी के मध्य में कराया था। यह पंचकोशी यात्रा का पहला पड़ाव है। मंदिर में एक ही चबुतरा है। जिस पर गर्भगृह, प्रदक्षिणा पथ, अंतराल, महामंडप तथा अर्द्धमंडप स्थापित है। कर्दमेश्वर महादेव मंदिर पूर्व मुखी है। इस मंदिर में कर्दम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना की थी। इसलिए इस मंदिर का नाम कर्दमेश्वर पड़ा। मंदिर में एक बड़ा कुंड भी है। जिसका नाम कर्दम कुंड है।

मान्यता है कि इस सरोवर का निर्माण कर्दम ऋषि के आंसूओं से हुआ था। मंदिर की बाहरी दीवारों पर हिंदू देवताओं की रेवती बलराम, ब्रह्मा, विष्णु, नटेश शिव, महिषासुरमर्दिनी, उमा माहेश्वर, नाग-नागी, गजांतक शिव, दशावतार पट्ट आदि कई मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।गर्भगृह की दीवारों पर भी प्रतिमाएं बनी हुई हैं। मान्यता है कि कर्दमेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से मनुष्य देव ऋण से मुक्त हो जाता है। मंदिर के पुजारी शिवकुमार गिरी ने बताया भगवान राम ने जब रावण का वध किया तो उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा। लंका विजय के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो गुरु वशिष्ठ ने उन्हें माता सीता के साथ जाकर कर्दमेश्वर महादेव के दर्शन करने को कहा। भगवान यहां आए और बाबा का दर्शन किए। उसके बाद माता सीता के यहां परिक्रमा किए। तब जाकर उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से छुटकारा मिला। उन्होंने बताया कि सावन में इस शिवलिंग का और भी महत्व बढ़ जाता है। सावन के सोमवार को यहां पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। दूर-दूर से लोग यहां पर भगवान शिव का दर्शन करने लोग पहुंचते हैं।

