यहां से होती है चारधाम यात्रा की शुरुआत, मां यमुनोत्री के दर्शन से धन्य हो जाते हैं श्रद्धालु 

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उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री धाम को चार धाम यात्रा का प्रथम पडाव माना गया है।यहां सूर्यपुत्री, शनि और यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम से एक किलोमीटर दूर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। यमुनोत्री धाम हिन्दू तीर्थ में सबसे प्रमुख स्थलों में से एक है। इसीलिए लाखों करोडों श्रद्धालुओं के आस्था के केंद्र यमुनोत्री का कपाट हर साल मई जून के महीने में अक्षय तृतीया के दिन खोला जाता है और अक्टूबर के कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है। सर्दियों में मंदिर बंद करने का कारण यह भी है की यहां भारी बर्फ़बारी होती है। इससे रास्ते पूरी तरह बर्फ से ढंक जाते हैं।

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यमुनोत्री मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के राजा सुदर्शन ने करवाया था, जो प्राकृतिक आपदा से ध्वस्त हो गया था। बाद में इसका पुनर्निर्माण जयपुर की रानी गुलेरिया ने 19 वीं शताब्दी के अंत में करवाया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार यमुनोत्री असिति ऋषि का निवास स्थान था, जहां पर बैठ कर उन्होंने हजारो बर्षों तक मां यमुना की तपस्या की थी। वे अपनी बृद्धावस्था के दौरान कालिंदी पर्वत में स्थित सप्तऋषि कुंड में स्नान करने के लिए नहीं जा पाए। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां यमुना उन्हीं की कुटिया से प्रकट हो गईं और उसी दैवीय स्थान को यमुनोत्री धाम के नाम से जाना जाता है।

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यमुनोत्री धाम कैसे पहुंचे
यमुनोत्री पहुंचने के लिए आप ट्रेन से देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश आ सकते हैं फिर यहां से बस या प्राइवेट टेक्सी भी लेकर अपनी यात्रा पूरी कर सकते हैं। आगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो आप पहले फ्लाइट से सबसे नजदीकी जाली ग्रांट देहरादून एयरपोर्ट आएंगे। यहां से आपको बस या टेक्सी से आगे आना होगा। 

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यमुनोत्री दर्शन कैसे करें
भक्त सबसे पहले यमुनोत्री मंदिर परिसर में पहुंचकर कुंड में स्नान करते हैं। यह गर्म पानी का कुंड है।  इसे सूर्य कुंड के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य कुंड के पास ही में एक शिला स्थित है जिसे दिव्य शिला कहा जाता है। भक्त देवी की पूजा करने से पहले इस शिला में दर्शन करते है। वैसे तो यमुनोत्री धाम में कई प्राकृतिक गर्म पानी के कुंड मौजूद हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध सूर्य कुंड माना जाता है। यहां आने बाले श्रद्धालु मां यानुना देवी को प्रसाद चढाने के लिए अपने साथ चावल को ले आते हैं, जिसे कपड़े की पोटली में बांधकर सूर्य कुंड में पकाते हैं। यमुनोत्री दर्शन करने के बाद भक्त अपने पकाए हुए चावल को प्रसाद के रूप में घर ले जाते हैं।

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कब जाएं यमुनोत्री 
यमुनोत्री धाम की यात्रा करने के लिए सितम्बर से अक्टूबर के महीने का समय सबसे अच्छा होता है।  क्योंकि इस समय यहां ज्यादा भीड़ भाड़ भी नहीं होती है। वहीं मई जून यानि कि गर्मियों में पीक टाइम होता है, लोग गर्मियों की छुट्टी की वजह से काफी ज्यादा श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच जाते हैं। उस समय होटल और खाने पीने की वस्तुए का रेट डबल हो जाता है। जुलाई के महीने में बरसात की वजह से यात्रा में  काफी दिक्कतें आती हैं। 

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यमुनोत्री मंदिर कब खुलता है
यमुना दर्शन को जाने से पहले ये जानना जरूरी है कि यमुनोत्री मंदिर कब खुलता है। आपकी जानकारी के बता दें कि हर साल मई जून के महीने में अक्षय तृतीया के दिन मंदिर का कपाट खोला जाता है और अक्टूबर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर का कपाट अगले 6 महीने के लिए बंद कर दिया जाता है। सर्दियों के महीने में यमुनोत्री के रास्ते और मंदिर पूरी तरह से बर्फ से ढक जाता है। इसकी वजह से मंदिर बंद करना पड़ता है। मंदिर का कपाट बंद होने से पहले मां यमुना को बड़े धूम धाम के साथ सजाया जाता है। और फिर पालकी में बैठाकर खरसाली गांव लाया जाता है। अगले 6 माह तक उनकी पूजा इसी स्थान पर होती है। 

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यमुनोत्री में कहां रुकना चाहिए
जानकी चट्टी में उत्तराखंड राज्य की तरफ से गेस्ट हाउस बनाए गए हैं, जहां आप ठहर सकते हैं इसका चार्ज बहुत कम होता है। इसके अलावा प्राइवेट होटल भी  जानकी चट्टी के आस पास मिल जाएंगे। इनका किराया 500 रुपये से लेकर 5 हजार तक होता है। आप अपने बजट के हिसाब से होटल बुक कर सकते हैं। यमुनोत्री में खाने के लिए हर प्रकार की थाली की सुविधा मिल जाती है। इसमें साउथ इंडियन, नार्थ इंडियन के साथ और भी थाली होती है। इनका चार्ज 150 रुपये से 200 रुपये तक होता है। 

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यमुनोत्री के आस पास घूमने वाली जगह
यमुनोत्री मंदिर दर्शन के बाद चाहे तो मंदिर से 1 किलोमीटर आगे छोटा ग्लेशियर में ट्रैकिंग करने जा सकते हैं। इसके अलावा सप्तऋषि कुंड,सूर्यकुंड, हनुमान चट्टी, खरसाली आदि जगहों पर घूम सकते हैं और हां चार धाम की यात्रा पर अपने साथ गर्म कपड़ें और जरूरी दवाइयां रखना ना भूलें। 

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