सोते-सोते कैसे थम जाती है दिल की धड़कन? जानिए वो कारण जो ज्यादातर लोग नहीं समझते

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आजकल के तनावपूर्ण जीवन और अस्वस्थ जीवनशैली के चलते हृदय से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इन्हीं में से एक है क्रॉनिक हार्ट फेल्यर (Chronic Heart Failure)—एक ऐसी गंभीर स्थिति जिसमें दिल शरीर को जरूरत के अनुसार पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुंचा पाता। यह बीमारी धीरे-धीरे विकसित होती है, और अक्सर इसके शुरुआती लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि लोग उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। यही लापरवाही कभी-कभी जानलेवा साबित हो जाती है—खासतौर पर रात के समय, जब शरीर विश्राम की स्थिति में होता है।

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कैसे पहचानें इस ‘खामोश कातिल’ के शुरुआती संकेत?

क्रॉनिक हार्ट फेल्यर की शुरुआत में शरीर खास प्रतिक्रिया नहीं दिखाता। लेकिन जैसे-जैसे हृदय की कार्यक्षमता कम होती जाती है, लक्षण स्पष्ट होने लगते हैं। सबसे सामान्य लक्षण है लगातार थकान, जो व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को भी प्रभावित करने लगती है। इसके अलावा, पैरों, टखनों और पंजों में सूजन, रात के समय बार-बार पेशाब लगना, और श्वास लेने में कठिनाई जैसे लक्षण उभरते हैं। कुछ मामलों में छाती में जकड़न, सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज़ (व्हीजिंग) और अनियमित हृदयगति भी देखने को मिलती है। यदि ऐसे संकेत लंबे समय तक बने रहें, तो इसे इग्नोर करना खतरनाक साबित हो सकता है।

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क्या पुरुषों को अधिक खतरा होता है? भ्रम या तथ्य?

यह धारणा काफी प्रचलित है कि यह रोग केवल पुरुषों में ज्यादा पाया जाता है, लेकिन सच्चाई इससे थोड़ी अलग है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि 45 साल से पहले पुरुषों में इस रोग का खतरा ज्यादा होता है — करीब 7:3 के अनुपात में। मगर जैसे ही उम्र 50 के पार होती है, महिलाओं और पुरुषों के बीच जोखिम बराबर हो जाता है। इसका मतलब है कि उम्र बढ़ने के साथ दोनों लिंग समान रूप से इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

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जानिए बीमारी के चरण और उनके अनुरूप इलाज

क्रॉनिक हार्ट फेल्यर को चिकित्सा की दृष्टि से चार स्तरों (Type 1 से Type 4) में वर्गीकृत किया जाता है:

टाइप 1: यह शुरुआती अवस्था होती है, जहां दवाओं के जरिए स्थिति को काबू में रखा जा सकता है।

टाइप 2 और टाइप 3: इन स्टेजेस में लक्षण गंभीर हो जाते हैं और केवल दवा पर्याप्त नहीं होती। इन मामलों में सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।

टाइप 4: सबसे गंभीर अवस्था, जब दिल की कार्यक्षमता 85-90% तक खत्म हो जाती है। इस स्थिति में केवल हार्ट ट्रांसप्लांट ही अंतिम विकल्प बचता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि हृदय की कार्यक्षमता 50% तक प्रभावित हो, तो समय रहते इलाज से स्थिति संभाली जा सकती है। लेकिन यदि यह 65% से अधिक गिर जाए, तो जटिलताएं तेजी से बढ़ जाती हैं।

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रोकथाम के उपाय – अपने दिल को रखें फिट और मजबूत

हृदय रोगों से बचने के लिए सबसे प्रभावशाली तरीका है जीवनशैली में सुधार। सबसे पहले अपने ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें। उच्च रक्तचाप दिल को अधिक मेहनत करने पर मजबूर करता है, जिससे उसकी क्षमताएं धीरे-धीरे घटती जाती हैं।

- दिनभर में दो लीटर से अधिक तरल पदार्थ लेने से बचें, ताकि शरीर में रक्त की मात्रा संतुलित रहे।
- नमक की खपत कम करें, क्योंकि अधिक सोडियम हृदय पर दबाव डालता है।
- धूम्रपान और शराब जैसी आदतें त्यागें, और पोषण से भरपूर, संतुलित आहार अपनाएं।
- साथ ही, हफ्ते में कम से कम 4 दिन हल्की एक्सरसाइज या योग करें।

इसके अलावा, हर 6 महीने में एक बार कार्डियक हेल्थ चेकअप करवाना चाहिए, ताकि किसी भी समस्या का समय पर पता लगाया जा सके।

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