भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग, जानिये इसके पीछे की पौराणिक कथा...
इन दिनों देश में गणेश चतुर्थी के महापर्व की धूम है। 10 सितंबर से शुरू हुआ यह पर्व 19 सितंबर तक चलेगा। ये 10 दिन भक्त भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा अर्चना करते है। मान्यता है कि भक्ति भाव से पूजा करने से विघ्नहर्ता आपके सभी कष्टों को दूर कर देते हैं।
हम सभी जानते हैं कि गणेश जी की पूजा में किन चीजों को अर्पित करना चाहिए और किन्हें वर्जित माना गया है। गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, लेकिन क्या आप जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में, अगर नहीं तो हम बताते हैं कि आखिर क्यों तुलसी का प्रयोग नहीं होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गणपति जी समुद्र किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी समय समुद्र किनारे धर्मात्मज कन्या तुलसी अपने विवाह के लिए यात्रा करते हुए वहां पहुंची थीं। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठकर तपस्या कर रहे थे। उनके गले में चंदन समेत अन्य रत्न जड़ित हार थे जिसमें उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी। गणेश जी की मनमोहक छवि को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया।
तब तुलसी ने गणेशजी को तपस्या से उठाकर विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणेश जी क्रोध में आ गए। उन्होंने तुलसी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। भगवान गणेश के न कहने से तुलसी क्रोधित हो गईं और उन्होंने श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।
वहीं, भगवान गणेश ने क्रोध में आकर तुलसी का विवाह राक्षस से होने का श्राप दे दिया। ये सुनकर तुलसी माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण नामक राक्षस से होगा। लेकिन तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी, उन्होंने कहा कि कलयुग में तुलसी जीवन और मोक्ष देने वाली होगी, लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग नहीं होगा।
इसलिए भगवान गणेश की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होता है। हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा सबसे पवित्र माना जाता है। इसके इस्तेमाल पूजा सामग्री में किया जाता है। भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी हैं, उनकी पूजा बिना तुलसी के अधूरी मानी जाती है.

