खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोविंद सिंह का प्रकाशोत्सव पर्व आज, पढ़िए उनके प्रेरणादायक विचार

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गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु रहे। गुरु गोविंद सिंह जी का आज 355 वां प्रकाश पर्व है। गुरु गोविंद सिंह ने अन्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। सबसे पहले भाई दया सिंह, धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहिब सिंह को अमृत छका कर पंच प्यारों की स्थापना की थी। गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर साहिब पहुंचकर सन् 1693 और 1701 में शहर की संगत को तीन हुकुमनामे भेजे थे। 

जो आज भी यहियागंज गुरुद्वारे में ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित हैं। तीनों हुकुमनामे पंजाबी भाषा में हैं। गुरु ने हुकुमनामे में शहर की संगत को गुरु भक्ति का उपदेश देने के साथ ही उनसे एक तोप और कुछ सोना भेजने की बात कही थी। उस समय पोंटा साहिब का युद्ध चल रहा था, इसलिए इसकी जरूरत थी। इसके साथ ही उस दौर में किसी सेवादार द्वारा गुरुद्वारा लाए गए गुरु की हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब भी मौजूद है। गुरु गोविंद सिंह की हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब के आखिरी पन्ने पर उनके हस्ताक्षर भी मौजूद हैं।

यहियागंज गुरुद्वारे में दो माह रुके थे गुरु गोविंद सिंह वर्ष 1672 में आशियाना गुरुद्वारा आए थे। गुरुद्वारा के प्रधान डॉ. गुरमीत सिंह बताते हैं कि छह वर्ष की आयु में माता गुजरी और मामा कृपाल जी महाराज के साथ पटना साहिब से आनंदपुर साहिब जाते समय दो महीने 13 दिन गुरुद्वारा में ठहरे थे। गुरु गोविंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर भी इसी गुरुद्वारें में रुके थे। सन 1670 में गुरुद्वारे में तीन दिन रुक कर संगत को अपने उपदेशों से संचित किया था।
बचन करकै पालना: अगर आपने किसी को वचन दिया है तो उसे हर कीमत में निभाना होगा। 

किसी दि निंदा, चुगली, अतै इर्खा नै करना : किसी की चुगली व निंदा करने से हमें हमेशा बचना चाहिए और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय परिश्रम करने में फायदा है।

 कम करन विच दरीदार नहीं करना : काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कोताही न बरतें।

गुरुबानी कंठ करनी : गुरुबानी को कंठस्थ कर लें।

दसवंड देना : अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें।

खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोविंद सिंह का प्रकाशोत्सव पर्व आज, पढ़िए उनके 5 प्रेरणादायक विचार

 गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु रहे। गुरु गोविंद सिंह जी का आज 355 वां प्रकाश पर्व है। गुरु गोविंद सिंह ने अन्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। सबसे पहले भाई दया सिंह, धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहिब सिंह को अमृत छका कर पंच प्यारों की स्थापना की थी। गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर साहिब पहुंचकर सन् 1693 और 1701 में शहर की संगत को तीन हुकुमनामे भेजे थे। 

जो आज भी यहियागंज गुरुद्वारे में ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित हैं। तीनों हुकुमनामे पंजाबी भाषा में हैं। गुरु ने हुकुमनामे में शहर की संगत को गुरु भक्ति का उपदेश देने के साथ ही उनसे एक तोप और कुछ सोना भेजने की बात कही थी। उस समय पोंटा साहिब का युद्ध चल रहा था, इसलिए इसकी जरूरत थी। इसके साथ ही उस दौर में किसी सेवादार द्वारा गुरुद्वारा लाए गए गुरु की हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब भी मौजूद है। गुरु गोविंद सिंह की हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब के आखिरी पन्ने पर उनके हस्ताक्षर भी मौजूद हैं।

यहियागंज गुरुद्वारे में दो माह रुके थे गुरु गोविंद सिंह वर्ष 1672 में आशियाना गुरुद्वारा आए थे। गुरुद्वारा के प्रधान डॉ. गुरमीत सिंह बताते हैं कि छह वर्ष की आयु में माता गुजरी और मामा कृपाल जी महाराज के साथ पटना साहिब से आनंदपुर साहिब जाते समय दो महीने 13 दिन गुरुद्वारा में ठहरे थे। गुरु गोविंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर भी इसी गुरुद्वारें में रुके थे। सन 1670 में गुरुद्वारे में तीन दिन रुक कर संगत को अपने उपदेशों से संचित किया था।

प्रेरणादायक विचार
 

बचन करकै पालना: अगर आपने किसी को वचन दिया है तो उसे हर कीमत में निभाना होगा। 

किसी दि निंदा, चुगली, अतै इर्खा नै करना : किसी की चुगली व निंदा करने से हमें हमेशा बचना चाहिए और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय परिश्रम करने में फायदा है।

 कम करन विच दरीदार नहीं करना : काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कोताही न बरतें।

गुरुबानी कंठ करनी : गुरुबानी को कंठस्थ कर लें।

दसवंड देना : अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें।

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