काशी के पिशाच मोचन तीर्थ का ये पेड़ है खास,अतृप्त आत्माओं का है इसमें वास 

pishach mochan
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जो कहीं नहीं दिखता जो कहीं नहीं होता, वो काशी में होता है। चाहे वह कर्मकांड हो या फिर कोई रीति‍ रिवाज। ऐसा ही अजीबो गरीब विधान पिशाच मोचन कुंड पर भी होता है। जहां सिक्के और कीलों में अतृप्त आत्माओं का बसेरा है। जी हां पिशाच मोचन कुंड का पीपल का ये पेड़ इस मान्यता का साक्षी है। इस पेड़ के मोटे तने से लेकर शाखाओं में सिक्कों और कीलों का ढ़ेर है। पेड़ में ठोंके गए असंख्य सिक्के और कील किसी ना किसी अतृप्त आत्मा का ठिकाना है।pishach mochan

इसके अलावा मृत व्यक्ति की तस्वीर या अन्य चिन्हों को भी पेड़ में ठोंका जाता है। इसमें अच्छी और दुष्ट दोनों तरह की आत्माये भी हैं तो बहुत से प्रेत और पिशाच भी हैं। पेड़ में सिक्के या कील गाड़ने का विधान बारह महीने का होता है लेकिन पितृ पक्ष के 15 दिन खास माने जाते हैं। ये पक्ष पितृ लोक में रहने वाले पितरों और प्रेत योनियों में भटकती आत्माओं का मुक्ति द्वार माना गया है। गया में पितरों का श्राद्ध होता है। लेकिन पिशाच मोचन में पितरों के अलावा घात प्रतिघात और अकाल मृत्यु में मारे गए ज्ञात अज्ञात आत्माओं के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। इस पक्ष में किया गया श्राद्ध आत्माओं को मोक्ष दिलाता है।

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जो लोग पितृ दोष, भूत प्रेत और दुष्ट आत्माओं से त्रस्त रहते हैं वो यहाँ एक दो रूपये या पुराने सिक्कों को पूजते हैं और उसमें भूत प्रेत या अतृप्त आत्मा को यहाँ पर बैठा देते हैं। बैठने का विधान यहाँ पेड़ में सिक्के या कील को ठोंक देना है। सिक्के के अलावा छोटी बड़ी किलों को भी पेड़ में ठोंका जाता है।

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वहीँ, अगर पिचाशमोचन कुंड की बात करें तो इस कुंड का इतिहास अपने आप में अनोखा है। ये कुंड अनादि काल से पिशाचमोचन में स्थित है तब इसे विमलोदक सरोवर के नाम से जाना जाता था । नीरज कुमार पांडेय ने कुंड के बारे में बताया कि अनादि काल से ये कुंड आनंदवन कहलाता था। पुष्कर के रहने वाले ब्राह्मण की अकाल मृत्यु से मौत हो गयी थी और वो पिशाच योनि में भटकते हुए विमलोदक सरोवर तक पहुँच गए और इस सरोवर में डुबकी लगाते ही उस ब्राह्मण को अपने पिशाच योनि से मुक्ति मिल गयी।

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यूँ तो काशी में मरने वालों को ऐसे ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है लेकिन जिनकी मौत अकाल मृत्यु से होती हैं उनको मोक्ष की प्राप्ति इसी कुंड में आकर मिलती है। वहीं भटकती आत्माओं को कुंड के पास स्थित पीपल के वृक्ष पर बैठाया जाता है। और ये सिलसिला सदियों से ऐसे ही चला आ रहा है। यहाँ देश- विदेश से लोग अपने पितरों का तर्पण करने के लिए आते हैं ताकि पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सके।

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