Pitru Paksha 2021 : जानिए क्यों कौए को माना जाता है पितरों का स्वरूप, क्या है मान्यताएं
अभी पितृ पक्ष का महीना चल रहा है और ये 6 अक्टूबर तक चलेगा। पितृ पक्ष में कौए की अहमियत काफी बढ़ जाती है। कौओं को ग्रास दिए बिना श्राद्ध पूरा नहीं होता। इन्हें पितरों का स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि यदि पितृ पक्ष में तर्पण देने के दौरान अगर मुंडेर पर कौआ बैठ जाए तो ये अत्यंत शुभ संकेत होता है।
यदि कौआ ग्रास खा ले तो इसे और भी शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे हमारे पितर बहुत प्रसन्न होते हैं और परिवार को आशीर्वाद देते हैं। पितरों के आशीर्वाद से परिवार फलता-फूलता है, लेकिन ऐसे में एक सवाल मन में जरूर आता है कि आखिर क्यों कौए को पितरों का स्वरूप माना जाता है? आइये जानते इसकी वजह...
प्रभु श्रीराम ने दिया था वरदान
कौए से जुड़ी ये कथा त्रेतायुग की बताई जाती है। मान्यता है कि एक बार इंद्र के पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण किया और माता सीता के पैर को घायल कर दिया। ये देखकर प्रभु श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर कौए की एक आंख फोड़ दी। इसके बाद जयंत को अपनी भूल का आभास हुआ और वो श्रीराम से क्षमा याचना करने लगा। इसके बाद श्रीराम ने उसे क्षमा कर दिया और कहा कि आज के बाद तुम्हें दिया गया भोजन पितरों को प्राप्त होगा। तब से कौए को पितरों का स्वरूप कहा जाने लगा। चूंकि पितृ पक्ष पहले से ही पितरों को समर्पित होते हैं, ऐसे में यदि कौआ दिख जाए या वो आपका दिया हुआ ग्रास उठा ले, तो इसे पितरों का आशीर्वाद माना जाता है।
ये भी है मान्यता
शास्त्रों में कौओं को यमराज का प्रतीक माना गया है। यमराज मृत्यु के देवता हैं। मान्यता है कि यदि कौआ आपका दिया हुआ अन्न खा ले, तो इससे यमराज काफी प्रसन्न होते हैं और उन्हें तमाम कष्टों से मुक्ति मिलने के साथ शांति मिलती है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यमराज ने कौए को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पितरों को शांति देगा। तब से कौए को भोजन देने की प्रथा चल रही है।
कौआ न मिले तो क्या करें
पर्यावरण का असर अब पशु और पक्षियों पर भी दिखने लगा है। तमाम पशु-पक्षी अब लुप्त होते जा रहे हैं। कौआ भी अब बहुत कम नजर आता है, ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि श्राद्ध पक्ष में अगर कौआ नजर न आए तो क्या करें? ज्योतिष के अनुसार अगर कौआ नहीं आता, तो ग्रास किसी भी पक्षी को दिया जा सकता है।
वैज्ञानिक महत्व
पितरों में कौए की अहमियत बढ़ने का वैज्ञानिक महत्व भी है। दरअसल इसका अर्थ लोगों को ये समझाना है कि प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए हर एक पशु-पक्षी का अपना महत्व है. कौए को चालाक पक्षी माना जाता है, लेकिन वास्तव में वो एक सफाईकर्मी की तरह काम करता है। ये छोटे कीड़ों के अलावा प्रदूषण के कारकों को भी खा लेता है। इससे वातावरण शुद्ध होता है। इसलिए इनका संरक्षण बहुत जरूरी है. लेकिन पेड़ कटने से कौओं की संख्या भी कम होने लगी है.

