जानिए मौली-रक्षासूत्र का महत्व, इसे बंधवाते समय रखें ये सावधानी
हिंदू धर्म में मौली शुभता का प्रतीक माना जाता है, कहते है मौली बांधने से कई बाधाएं टल जाती है। मौली को रक्षा सूत्र भी कहते है, इसे कलाई में बांधने के कारण कलावा भी कहा जाता हैं। हर धार्मिक कार्य या पूजा के आरम्भ में तिलक के साथ मौली को अनिवार्य माना जाता है। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है।
मौली (कलावा) बांधने का सिर्फ धार्मिक हीं नहीं बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी हैं। आइये जानते हैं मौली का धार्मिक महत्व और वैज्ञानिक महत्व।
मौली का धार्मिक महत्व
मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था।
इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। मौली को हर हिन्दू बांधता है, इसे मूलतः रक्षा सूत्र कहते हैं।
तीन धागों की मौली का तात्पर्य त्रिदेव से है -
मौली कच्चे धागे या सूत से बनाई जाती है जिसमें मूलतः 3 रंग के धागे होते हैं। लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी -कभी यह 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की तो कभी पंचदेव।
मन्नत पूरी हो जाने पर खोल दे मौली -
मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। इसके अलावा मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो इसे खोल दिया जाता है। इसे घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता और इसे पशुओं को भी बांधा जाता है।
शुभता का प्रतीक है मौली
व्यापार और घर में भी वस्तुओं पर मौली का प्रयोग नए वाहन, नए सामान , व्यापार में कलम, बही खाते, तिजोर , पूजन साम्रग्री आदि पर मौली बांधना शुभता और लाभ का प्रतीक माना जाता है।
-व्यापार में लाभ के लिए
व्यापार में अच्छे लाभ के लिए, वाहन की सुरक्षा के लिए मौली बांधी जाती है। इससे रक्षा कवच के रूप में भी देखा जाता है वहीं नयी गाड़ियों अथवा नयी वस्तुओं में मौली अथवा कलावा बांधने से नजर नहीं लगती है।
संकटों से रक्षा करती है मौली
मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते है। भाग्य व जीवन रेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।
इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है।
मौली बांधने के नियम
- शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए, विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
- मौली कहीं पर भी बांधें एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि इस सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए व इसके बांधने में वैदिक विधि का प्रयोग करना चाहिए।
- मौली बंधाते समय हाथ में चावल रखके मुट्ठी बांधना और साथ में दूसरा हाथ सिर पर रखे। पूजा करते समय नवीन वस्त्रों के न धारण किए होने पर मोली हाथ में धारण अवश्य करना चाहिए.धर्म के प्रति आस्था रखें।
- एक सप्ताह के बाद नई मौली धारण करें
मंगलवार या शनिवार को पुरानी मौली उतारकर नई मौली धारण करें। संकटों के समय भी रक्षासूत्र हमारी रक्षा करते हैं।

