जानिए आस्था के महापर्व छठ पूजा का महत्व, नहाय खाय, खरना विधि व अर्घ्य देने का समय
वाराणसी। सूर्योपासना का महापर्व छठ संतान की कामना व उसकी दीर्घायु के लिए मनाया जाता है। यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही नेपाल के तराई क्षेत्रों में भी मनाया जाता है। बिहार वासियों का यह सबसे बड़ा पर्व उनके प्रदेश की वैदिक आर्य संस्कृति की झलक को दर्शाता है। मुख्य रूप से ॠषियों द्वारा लिखे गए ऋग्वेद में सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार में यह पर्व मनाया जाता हैं। तो आइये आचार्य पं. अमित कुमार पाण्डेय से जानते हैं छठ पर्व का महत्व व इसके पूजा की विधि।
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय से होता है। व्रत का दूसरा दिन खरना होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह कार्तिक मास की पंचमी को मनाया जाता है। गोधूली बेला में खीर और फलों का प्रसाद बना कर व्रतियां अर्घ्य देंगी। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के साथ 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा।
इस साल छठ का आरंभ 8 नवंबर 2021 दिन सोमवार, नहाय-खाय से शुरू हो चुका है। 9 नवंबर मंगलवार को खरना किया जाएगा। अगले दिन10 नवंबर बुधवार को ढलते सूर्य को अर्घ्य देने दिया जाएगा। 11 नवंबर बृहस्पतिवार को सप्तमी तिथि में उगते सूर्य को छठ का अंतिम अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही यह महापर्व संपन्न होगा। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान सभी छठ मैया की भक्ति में लीन रहते हैं।
10 नवंबर सूर्यास्त- 17:29:25 बजे छठ पर्व संध्या अर्घ्य
11 नवंबर सूर्योदय- 06:41:15 बजे छठ पर्व समापन अर्घ्य
छठ व्रत के दूसरे दिन खरना में शाम में मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से गन्ने की रस या गुड़ के साथ अरवा चावल मिला कर खीर बनायी जाएगी। खीर के साथ घी चुपड़ी रोटी और कटे हुए फलों का प्रसाद भगवान सूर्य को अर्पित किया जाएगा। दूध और गंगा जल से अर्घ्य देने के बाद व्रतियां इसे प्रसाद में ग्रहण करेंगी।
कुछ जगह पर खरना के प्रसाद बनाने का अन्य तरीका भी है जिसमें बासमती चावल, चने का दाल, छोटे आकार की रोटी, गुड़, दूध और चावल का छोटा पिठ्ठा बनाकर सूर्य देवता और छठी मैया को भोग लगाया जाता है।
छठ पूजा में 36 घंटे के व्रत के दौरान न कुछ खाया जाता है और न ही जल पिया जाता है। शाम को छठ का व्रत रखी महिलाओं के घरों में गुड़, अरवा चावल व दूध से मिश्रित रसिया बनाए जाते हैं। रसिया को केले के पत्ते में मिट्टी के ढकनी में रखकर मां षष्ठी को भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां षष्ठी एकांत व शांत रहने पर ही भोग ग्रहण करती हैं।

