जन्माष्टमी 2021 : जानिए भगवान श्री कृष्ण की 16,108 पत्नियों का सच, क्या है इसके पीछे की कथा
कहते हैं कि भगवान कृष्ण की 16,108 पटरानियां थीं। इस संबंध में कई कथाएं भी प्रचलित हैं और लोगों में इसको लेकर जिज्ञासा भी है, कि क्या यह सही है? आइए, जानते हैं भगवान श्री कृष्ण की 16,108 पटरानियां होने के पीछे राज क्या है।
मूलत: भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थी- रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। सभी से उनका विवाह विपरीत परीस्थिति में हुआ था। परंतु 16,108 पत्नियां होने की जनश्रुति को समझना होगा। भगवान कृष्ण की 16108 पत्नियों का सच जानिए।
कृष्ण अपनी आठों पत्नियों के साथ सुखपूर्वक द्वारिका में रह रहे थे। एक दिन स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने आकर उनसे प्रार्थना की, 'हे कृष्ण! प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। क्रूर भौमासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुण्डल और देवताओं की मणि छीन ली है और वह त्रिलोक विजयी हो गया है। इंद्र ने कहा, भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुन्दरी कन्याओं का हरण कर उन्हें अपने यहां बंदीगृह में डाल रखा है। कृपया आप हमें बचाइए प्रभु।
इंद्र की प्रार्थना स्वीकार कर के श्रीकृष्ण अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरुड़ पर सवार हो प्रागज्योतिषपुर पहुंचे। वहां पहुंचकर भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से सबसे पहले मुर दैत्य सहित मुर के छः पुत्र- ताम्र, अंतरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभश्वान और अरुण का संहार किया।
मुर दैत्य के वध हो जाने का समाचार सुन भौमासुर अपने अनेक सेनापतियों और दैत्यों की सेना को साथ लेकर युद्ध के लिए निकला। भौमासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और घोर युद्ध के बाद अंत में कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से उसका वध कर डाला।इस प्रकार भौमासुर को मारकर श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर उसे प्रागज्योतिष का राजा बनाया।
भौमासुर के द्वारा हरण कर लाई गईं 16,100 कन्याओं को श्रीकृष्ण ने मुक्त कर दिया। ये सभी अपहृत नारियां थीं या फिर भय के कारण उपहार में दी गई थीं और किसी और माध्यम से उस कारागार में लाई गई थीं। वे सभी भौमासुर के द्वारा पीड़ित थीं, दुखी थीं, अपमानित, लांछित और कलंकित थीं।
सामाजिक मान्यताओं के चलते भौमासुर द्वारा बंधक बनकर रखी गई इन नारियों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं था, तब अंत में श्रीकृष्ण ने सभी को आश्रय दिया। ऐसी स्थिति में उन सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण को ही अपना सबकुछ मानते हुए उन्हें पति रूप में स्वीकार किया, लेकिन श्रीकृष्ण उन्हें इस तरह नहीं मानते थे। उन सभी को श्रीकृष्ण अपने साथ द्वारिकापुरी ले आए। वहां वे सभी कन्याएं स्वतंत्रपूर्वक अपनी इच्छानुसार सम्मानपूर्वक द्वारका में रहती थी। महल में नहीं। वे सभी वहां भजन, कीर्तन, ईश्वर भक्ति आदि करके सुखपूर्वक रहती थीं।
द्वारका एक भव्य नगर था जहां सभी समाज और वर्ग के लोग रहते थे।उल्लेखनीय है कि यह भी जनश्रुति है कि पुराणों में उल्लेख है कि भौमासुर ने उन कन्याओं को इसलिए कैद करा था ताकि वह उनकी बलि देकर अमर होकर शक्तिशाली बन सकते, परंतु श्रीकृष्ण ने उसका वध करके 16 हजार कन्याओं को कैद से मुक्त कराकर उन्हें उनके घर भेज दिया था। परंतु घर भेजे जाने के बाद उनके परिवार ने उन्हें अपनाने से इनकार कर दिया तब उन सभी ने श्रीकृष्ण का आह्वान किया तो श्रीकृष्ण ने 16 हजार रुप बनाकर उन सभी को अपना लिया था। परंतु उपरोक्त कहानी ज्यादा सच मालूम होती है।

