दशाश्‍वमेध घाट, जहां स्वयं सृष्टि रचयिता ब्रह्मा ने किया था दस अश्वमेध यज्ञ !

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वाराणसी। सृष्टि के रचयिता कहे जाने वाले जगदपिता ब्रह्मा ने भी किया था अपने वैभव और शक्ति का प्रदर्शन! सम्पूर्ण विश्व पर अपने आधिपत्य को बनाये रखने के लिए स्वयं ब्रह्मा को भी लेना पड़ा था अश्वमेध यज्ञ का सहारा।

जी हाँ ! सृष्टि के कण कण के निर्माता कहे जाने वाले ब्रह्मा जी ने एक नहीं बल्कि दस-दस अश्वमेध यज्ञों के जरिये तीनो लोकों पर अपनी प्रभुता बनाये रखी। हालाँकि, इसके लिए भी उन्हें शरण लेनी पड़ी थी देवाधिदेव महादेव शिव की। वो कौन सी जगह थी जहाँ साक्षात् ब्रह्मा जी ने किया था अश्वमेध यज्ञ और वो भी एक नहीं बल्कि दस-दस।

यज्ञों में सर्वाधिक प्रतिष्ठित, सर्व मनोकामनापूर्ति और सर्वशक्तिमान वैभव प्रदान करने वाला यज्ञ होता है 'अश्वमेधयज्ञ' । इस एक यज्ञ के जरिये प्राचीन काल से ही रहा महाराजा और सम्राटों ने भी 'चक्रवर्ती एकराट' का मुकाम हासिल किया था और इसी यज्ञ को सम्पादित किया था स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने।

स्कंदपुराण के काशीखण्ड (अध्याय-4) में उल्लिखित रुद्रसर नामक स्थान ही वह भूमि है जहाँ स्वयं जगदपिता ब्रह्मा जी को भी करना पड़ा था अश्वमेध यज्ञ और वो भी एक, दो या तीन नहीं बल्कि पूरे दस अश्वमेध यज्ञ। काश मुनि द्वारा स्थापित और साक्षात् शिव-पार्वती का निवास स्थल कहे जाने वाले काशी में स्थित है वह स्थान जहाँ ब्रह्मा जी ने साविधि किया था दस अश्वमेध यज्ञों को सम्पादित।

मत्स्यपुराण के अनुसार काशी के पञ्च महातीर्थों में से एक यह स्थान गंगा के तट पर स्थित है वर्त्तमान में इसे दशाश्वमेध घात के नाम से जाना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि भारत के सम्पूर्ण तीर्थों कि यात्रा करने में आशक्त व्यक्ति केवल इस स्थान यानि दशाश्वमेध घाट (रुद्रसर) कि यात्रा से ही सम्पूर्ण तीर्थों कि यात्रा का पुण्यफल प्राप्त कर लेता है।

जगदपिता ब्रह्मा जी द्वारा दस अश्वमेध यज्ञों कि सम्पादनस्थली का वर्णन महाभारत, मत्स्यपुराण, वायुपुराण, लिंगपुराण, अग्निपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, कृत्यकल्पतरु, जैन ग्रन्थ विविधतीर्थकल्प और त्रिस्तालिसेतु में भी मिलता है।

विश्वविजय कि कामना और 'चक्रवर्ती एकराट' (सम्राट से भी ऊंची पदवी) के प्रताप कि प्राप्ति के लिए असंख्य राजाओं ने अश्वमेध यज्ञ का ही सहारा लिया था। स्वयं अयोध्यानरेश श्रीराम ने भी इस यज्ञ को किया था। हालाँकि, काशी (वाराणसी) के रुद्रसर (दशाश्वमेध घाट) पर अश्वमेध यज्ञों का महात्म्य सर्वाधिक मन गया है।

ऐसा नहीं है कि रुद्रसर (दशाश्वमेध घाट) पर केवल जगदपिता ब्रह्मा ने ही दस अश्वमेध यज्ञ कराया हो बल्कि, दूसरी शताब्दी ईस्वीं में भारविश राजाओं ने भी कुषाणों को हारने के बाद यहीं पर दस अश्वमेध यज्ञों को सफलतापूर्वक पूर्णकर अपनी विजय पताका फहराया था।

सन 1735 में बाजीराव पेशवा द्वारा रुद्रसर (दशाश्वमेध घाट) का पक्का निर्माण कराया गया। मान्यता है कि पौराणिक रुद्रसर तीर्थ में स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है और वह मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करता है।

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